ग्रहों के कारकतत्व भाग १

ग्रहों के कारकतत्व भाग १

 

ग्रहों के कारकतत्व

ग्रहों के कारकतत्व

 

सूर्य:-

 

तांबा, सोना, पिता, धैर्य, शौर्य, आत्मा, प्रकाश, जंगल, मंदिर, हवन, उत्साह, शक्ति, पहाड़ में यात्रा, भगवान शिव से संबंधित कार्यों का कारक होता है।

 

चंद्र:-

 

अन्न, खेती, जल, गाय, माता का कुशल, फल, पुष्प, मोती, चांदी, वस्त्र, सफेद वस्तु, मुलायम वस्तु, यश, काँसा, दूध, दहीं, स्त्री प्राप्ति, सुखपूर्वक भोजन, रूप (सुंदरता) का कारक होता है।

 

मंगल:-

 

शारीरिक और मानसिक ताकत, पृथ्वी से उत्पन्न होने वाले पदार्थ, भाई-बहन के गुण, रण, साहस, रसोई की अग्नि, सोना, अस्त्र, चोर, शत्रु, उत्साह, दूसरे पुरुष की स्त्री में रति, मिथ्या भाषण, वीर्य (ताकत, पराक्रम), चित का उत्साह, उदारता, बहादुरी, चोट, सेनाधिपत्य का कारक होता है।

 

बुध:-

 

पांडित्य, बोलने की शक्ति, कला, निपुणता, विद्वानों द्वारा स्तुति, मामा, विद्या में बुद्धि का योग, यज्ञ, भगवान विष्णु से संबंधित धार्मिक कार्य, शिल्प, बन्धु, युवराज, मित्र, भांजा, भांजी, चतुरता आदि का कारक होता है।

 

गुरु:-

 

ज्ञान, अच्छे गुण, पुत्र, मंत्री, आचरण, चरित्र, आचार्यत्व (पढ़ाना या दीक्षा लेना), वेद शास्त्र, सदगति, देवताओं और ब्राह्मणों की भक्ति, यज्ञ, तपस्या, श्रद्धा, खजाना, विद्वता, सम्मान, दया, यदि किसी स्त्री की कुंडली हो तो उसके पति का विचार आदि का कारक गुरु होता है।

 

शुक्र:-

 

संपत्ति, सवारी, वस्त्र, भूषण, नाचने, गाने तथा बाजे के योग, सुगंधित पुष्प, रति (स्त्री-पुरुष प्रसंग), शैया (पलंग) और उससे संबंधित व्यापार, मकान, वैभव, विलास, विवाह या अन्य शुभ कर्म, उत्सव, यदि किसी पुरुष की कुंडली हो तो उसकी पत्नी का विचार आदि शुक्र के कारक होते हैं।

 

विशेष:-  वृहस्पति अर्थात गुरु पति का कारक और शुक्र पत्नी का कारक होता है, शुक्र स्त्री का कारक होने के नाते यह भी देखा जा सकता है कि उक्त जातक का स्त्रियों के साथ कैसे संबंध रहेगा।

 

शनि:-

 

आयु, मरण, भय, अपमान, पतन, बीमारी, दुख, दरिद्रता, बदनामी, पाप, मजदूरी, अपवित्रता, निंदा, मन का साफ न होना, मारने का सूतक, स्थिरता, भैस, आलस्य, कर्जा, लोहे की वस्तु, नौकरी, दासता, जेल जाना, खेती के साधन आदि शनि के कारक होते हैं।

 

शनि ग्रह से जुड़ी विस्तृत जानकारी व उनके सभी कारक तत्वों को जानने हेतु इस link पर जाएं।

 

राहु:-

 

शोध करने की प्रवृ्ति, निष्ठुर वाणी युक्त, विदेश में जीवन, यात्रा, अकाल मृत्यु, इच्छाएं, त्वचा पर दाग, चर्म रोग, सरीसृ्प, सांप और सांप का जहर, विष, महामारी, अनैतिक महिला से संबन्ध, दादा, नानी, व्यर्थ के तर्क, भडकाऊ भाषण, बनावटीपन, विधवापन, दर्द और सूजन, डूबना, अंधेरा, दु:ख पहुंचाने वाले शब्द, निम्न जाति, दुष्ट स्त्री, जुआरी, विधर्मी, चालाकी, संक्रीण सोच, पीठ पीछे बुराई करने वाले, पाखण्डी।

 

केतु:-

 

शोध, निष्ठुर वाणी, चर्म रोग, अतिशूल, दु:ख, चण्डीश्वर, कुत्ता, वायु विकार, क्षयरोग , ब्रह्मज्ञान, संसार से विरक्त, गणेशादि देवताओं की उपासना और मोक्ष का कारक है।

 

सभी ग्रहों के विभिन्न राशियों में अलग-अलग चीजों के कारक होते हैं जिनको मैं आगे भाग में विस्तार से बतायूँगा।

 

जय श्री राम।

Astrologer:- Pooshark Jetly

Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)

Mobile:-9919367470

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