शारदीय नवरात्र 2020: पितृ विसर्जन के दो पक्ष बाद आएंगी शक्ति की अधिष्ठात्री माँ दुर्गा

शारदीय नवरात्र 2020: पितृ विसर्जन के दो पक्ष बाद आएंगी शक्ति की अधिष्ठात्री माँ दुर्गा

 

शारदीय नवरात्र

शारदीय नवरात्र

 

शक्ति की अधिष्ठात्री देवी माँ दुर्गा की पूजा-आराधना का महापर्व शारदीय नवरात्र आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर नवमी तक चलता है जो कि इस वर्ष 17 अक्टूबर से आरंभ होकर 25 अक्टूबर तक चलेगा, इस बार अधिक मास के कारण नवरात्र का आरंभ पितृपक्ष समाप्ति के 1 माह बाद हो रहा है आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों को समर्पित होता है इसके विधान भाद्र शुक्ल पूर्णिमा से शुरू होते हैं और अमावस्या (सर्वपैत्रि अमावस्या या पितृ विसर्जन) पर पितरों को विधि विधान से उनके धाम विदा किया जाता है और इसके अगले दिन से ही आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को देवी का आवाहन व घट स्थापना कर नवरात्र पूजन किया जाता है इस बार पितृ पक्ष 2 सितंबर को शुरू हो रहा है इस दिन ही प्रतिपदा का श्राद्ध किया जाएगा और सर्वपैत्रि अमावस्या (पितृ विसर्जन) 17 सितंबर को होगी लेकिन दो पक्ष की बढ़त के कारण से नवरात्र 17 अक्टूबर से शुरू होगा।

 

2 से 17 सितंबर तक चलेगा पितृपक्ष।

 

18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक चलेगा अधिकमास।

 

17 अक्टूबर से शुरू होगा शारदीय नवरात्र।

 

मध्यान्ह में दशमी तिथि पड़ने के कारण शमी और शस्त्र के पूजन का विधान 25 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा तथा 26 अक्टूबर को विजया दशमी (दशहरा) तथा नवरात्र व्रत की पारणा की जाएगी।

 

नव दुर्गा रूपेण आदिशक्ति

माँ आदिशक्ति

 

शुद्ध आश्विन कृष्ण पक्ष 3 सितंबर से शुरू हो रहा है और शुद्ध पूर्णिमा 31 अक्टूबर को पड़ रही है इस बीच 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक अधिकमास के दो पक्ष होंगे, शुद्ध आश्विन शुक्ल पक्ष प्रतिपदा 17 अक्टूबर को नवरात्र आरंभ होगा जिसका समापन 25 अक्टूबर को नवमी व्रत-दर्शन के साथ होगा तथा इसी दिन विजय दशमी भी मनाई जाएगी, अधिकमास के कारण से ही इस बार चातुर्मास्य भी 5 माह का हो रहा है।

 

क्यों पड़ता है अधिकमास:-

 

अधिकमास का अर्थ

अधिकमास का अर्थ

 

सनातनी परंपरा में ज्योतिष शास्त्र अनुसार चंद्र गणना आधारित काल गणना पद्धति प्रमुख मानी जाती है इस पद्धति में चंद्रमा की 16 कलाओं के आधार पर दो पक्ष (कृष्णव शुक्ल) का एक मास माना जाता है प्रथम पक्ष अमांत और दूसरा पूर्णिमांत कहा जाता है कृष्ण पक्ष के प्रथम दिन से पूर्णिमा की अवधि में 29 दिन और 12 घन्टे होते हैं इस दृष्टि से गढ़ना अनुसार एक वर्ष 354 दिन का होता है तथा वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा करने में 365 दिन और 6 घन्टे का समय लगता है, सूर्य गणना सनातनी परंपरा की चंद्र गणना पद्धति में हर वर्ष 11 दिन 3 घड़ी व 48 पल का अंतर पड़ता है और यही अंतर तीन वर्ष में निरंतर बढ़ते हुए लगभग एक वर्ष का हो जाता है इसी अंतर के कारण हर तीन वर्ष में एक अधिकमास पड़ता है।

 

जय श्री राम।

Astrologer:- Pooshark Jetly

Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)

Mobile:- 9919367470

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