खाटूश्याम मंदिर की स्थापना कब और कहाँ हुई:—-Astrology Sutras

खाटूश्याम मंदिर की स्थापना कब और कहाँ हुई:—-Astrology Sutras

 

 

माहाभारत ग्रंथ के अनुसार बर्बरीक जो कि अतिबलशाली भीम के पौत्र व घटोत्कच और मोरवी के पुत्र थे, बचपन से ही उनमें एक विलक्षण शक्ति थी तथा इन्होंने युद्ध कला अपनी माता तथा श्री कृष्ण से सीखा था, बर्बरीक ने माता की आज्ञा अनुसार नव दुर्गा की घोर तपस्या की व उनको प्रसन्न कर तीन अमोघ बाण प्राप्त किए जो कि कभी विफल नही हो सकते थे इस प्रकार बर्बरीक “तीन बाणधारी” के नाम से प्रसिद्ध हुए।

 

महाभारत युद्ध के समय बर्बरीक की भी युद्ध में सम्मिलित होने की प्रवल इच्छा जागृत हुई व उन्होंने अपनी माता को वचन दिया कि जो भी पक्ष निर्बल होगा मैं उसकी तरफ से युद्ध करूँगा और नीले घोड़े पर सवार होकर कुरुक्षेत्र की रणभूमि की तरफ चल दिए उस समय श्री कृष्ण ध्यान में लीन थे और उन्होंने अपने योग विद्या से जब यह देखा तो ब्राह्मण रूप धारण कर के बर्बरीक के समक्ष पहुँच कर उन्हें रोक कर उनसे कुरुक्षेत्र की रणभूमि की तरफ जाने का कारण पूछा व बर्बरीक द्वारा यह बताए जाने पर कि वह युद्ध में भाग लेने जा रहे हैं उनकी हँसी उड़ाई और कहा कि केवल यह तीन बाण के साथ आप युद्ध कैसे कर सकेंगे इस पर बर्बरीक ने उत्तर दिया कि उनका एक बाण ही समस्त शत्रुओं का नाश करने के लिए काफी है और शत्रुओं का दमन करने के बाद उनका बाण वापस उनके तुणीर में आ जाएगा और यदि वह इन तीनों बाणों का एक साथ संघान किया तो तीनों बाणों की विध्वंसक शक्ति से समस्त ब्रह्मांड की नाश हो जाएगा, यह जानकर श्री कृष्ण जी ने उन्हें चुनौती दी कि इस पीपल वृक्ष के सभी सूखे पत्तों को भेद कर दिखाओ किंतु वही पत्ते भेदना है जो सूखे हों या उनमें छिद्र हो बर्बरीक ने श्री कृष्ण की चुनौती को स्वीकार किया और अपने एक ही बाण से उस पीपल वृक्ष के सभी सूखे व छिद्रित पत्तों को भेद दिया तत्पश्चात वह बाण श्री कृष्ण के चरणों के पास जाकर रुक गया तब बर्बरीक ने श्री कृष्ण जी से निवेदन किया कि एक पत्ता आपके पैर के नीचे बचा हुआ है अतः आप अपना पैर हटा लें अन्यथा यह बाण आपके पैर पर घात कर देगा क्योंकि दुर्गा जी से प्राप्त बरदान के अनुसार उनका कोई बाण लक्ष्य भेदे बिना वापस नही आता तब भी श्री कृष्ण जी के पैर न हटाने पर माँ दुर्गा प्रकट हुई व श्री कृष्ण जी से प्राथना की कि उनके वरदान की लाज रखने हेतु अपना पैर हटा लें तब श्री कृष्ण जी ने अपना पैर जैसे ही हटाया उस बाण ने उस बचे हुए पत्ते को भी भेद दिया तत्पश्चात श्री कृष्ण जी ने दुर्गा जी को यह वचन दिया कि उनके पैर का निचला हिस्सा आज से उनके शरीर का सबसे कमजोर भाग होगा तथा यही भाग उनके इस शरीर को त्याग कर परमधाम लौटने का कारण बनेगा।

 

 

 

श्री कृष्ण जी इस बात को भली-भांति जानते थे इस महायुद्ध में कौरवों की हार निश्चित है और यदि बर्बरीक को न रोका गया तो यह युद्ध अधर्म के विजय का कारण बन सकता है अतः ब्राह्मण रूपी श्रीं कृष्ण जी ने बर्बरीक से दान माँगने की इच्छा रखी तो बर्बरीक ने उन्हें दान देने का वचन देते हुए दान माँगने को कहा तब श्री कृष्ण जी ने दान रूप में बर्बरीक से उनका शीश माँगा इस पर बर्बरीक चिंतन में पड़ गए और श्री कृष्ण जी के उनकी चिंता का कारण पूछने पर उन्होंने श्री कृष्ण जी से कहा कि मेरी इस युद्ध के साक्षी बनने की प्रवल इच्छा थी इस पर श्री कृष्ण जी ब्राह्मण रूप को त्याग कर अपने वास्तविक रूप में आ गए और बर्बरीक को समझाते हुए कहा कि इस महायुद्ध में धर्म के विजय हेतु तुम्हारे शीश का दान अनिर्वाय है तथा श्री कृष्ण जी ने बर्बरीक को आशीर्वाद दिया कि उनका यह दान अनंत काल तक याद रखा जाएगा तथा उनकी इस महायुद्ध को देखने की इच्छा भी जरूर पूरी होगी इस आशीर्वाद को प्राप्त कर बर्बरीक अत्यंत प्रसन्न हुए व अपना शीश श्री कृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिया तत्पश्चात श्री कृष्ण जी ने उनके शीश को युद्धभूमि के समीप एक पर्वत पर स्थापित कर दिया जहाँ से बर्बरीक इस महाभारत युद्ध के प्रत्यक्ष साक्षी बनें।

 

महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद पांडवों में अहंकार की उत्पत्ति देखकर श्री कृष्ण जी मुस्कुराए और पांडवों को उस पर्वत पर ले गए जहाँ “महादानी” बर्बरीक का शीश स्थित था व उन्होंने बर्बरीक से निवेदन किया कि वह ही निर्णय लें कि पाँचों पांडव में से इस युद्ध के विजय का श्रेय किसको देना चाहिए इस पर बर्बरीक खूब हँसे और बोले कि कौन पांडव मैंने तो कुरुक्षेत्र में केवल श्री कृष्ण जी और उनके सुदर्शन चक्र को ही देखा श्री कृष्ण जी ने अकेले ही समस्त अधर्मियों का अंत किया अतः इस युद्ध में विजय श्री कृष्ण की ही हुई है इस बात से श्री कृष्ण जी प्रसन्न होकर बर्बरीक को आशीर्वाद देते हैं कि आज से तुम “श्याम” नाम से जाने जाओगे क्योंकि जो हारे का सहारा हो वही “श्याम” है अतः कलयुग में सभी लोग तुम्हारी मेरे नाम “श्याम” से पूजा करेंगे व जो भक्त तुम्हारी पूजा करेगा उसके सारे कष्ट दूर होंगे व उन्हें हर कार्य में सफलता प्राप्त होगी।

 

 

 

 

बर्बरीक के खाटूश्याम नाम का रहस्य:-

 

बर्बरीक का शीश श्री कृष्ण जी द्वारा  “खाटू नगर” के पर्वत पर स्थित किया गया था जिस कारण से उन्हें खाटूश्याम के नाम से भी जाना जाता है।

 

क्यों की जाती है खाटूश्याम की पूजा:-

 

स्कंद पुराण के अनुसार:-

 

तत्सतथेती तं प्राह केशवो देवसंसदि।

शिरस्ते पूजयिषयन्ति देव्या: पूज्यो भविष्यसि।।

(स्कंद पुराण, कौ. ख. ६६.६५)

 

भावार्थ:- हे वीर! ठीक है तुम्हारे शीश की पूजा होगी और तुम देवरूप में पूजित होकर प्रिसिद्धि को प्राप्त करोगे।

 

खाटूश्याम जी का यह मंदिर राजस्थान राज्य के सीकर जिले में स्थित है तथा इनके प्रमुख देवता श्री कृष्ण जी और प्रमुख उत्सव फाल्गुन महोत्सव है इनके अन्य नाम खाटू नरेश, मोर्विनंदन व मोरछड़ी धारक है, मोर पंखों से बनी छड़ी को हमेशा अपने पास रखने के कारण से इनका नाम मोरछड़ी कहलाया।

 

जय श्री राम।

Astrologer:- Pooshark Jetly

Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)

Mobile:- 9919367470

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