भृगु सूत्र आधारित  प्रथम भाव में सूर्य का फल

भृगु सूत्र आधारित  प्रथम भाव में सूर्य का फल

 

अनेक ग्रंथों में सूर्यादि सभी ग्रहों के विभिन्न स्थानों में फल बताएं गए हैं अतः मैं भृगु सूत्र आधारित सूर्य के विभिन्न भावों में फल को १२ लेख में लिख रहा हूँ यह सभी सूत्र अकाट्य व अचूक होने के साथ-साथ दुर्लभ भी है तो चलिए सर्वप्रथम हम सूर्य के प्रथम भाव के फल के बारे में जानते हैं:-

 

 

भृगु सूत्र आधारित सूर्य का प्रथम भाव में फल:-

 

भृगु सूत्र आधारित प्रथम भाव में सूर्य का फल

भृगु सूत्र आधारित प्रथम भाव में सूर्य का फल

 

१. यदि लग्न में सूर्य हो तो व्यक्ति सामान्यतः निरोगी रहता है।

 

२. यदि लग्न में सूर्य हो तो व्यक्ति पित्त प्रकृति का होता है तथा ऐसे व्यक्तियों को नेत्रों में विकार उत्पन्न होता है (प्रायः दृष्टि मंद होती है तथा चश्मा शीघ्र ही लग जाता है)।

 

३. यदि सूर्य लग्न में तो व्यक्ति मेधावी (अच्छी स्मरण शक्ति तथा ऊहापोह से युक्त) होता है तथा उसका चरित्र दृढ़ होता है।

 

४. यदि लग्न में सूर्य हो तो व्यक्ति के उदर में उष्णता रहती है (जिसके कारण उसे भूख बहुत लगती है तथा कब्ज नही रहता और पेट साफ रहता है)।

 

५. यदि लग्न में सूर्य हो तो व्यक्ति की संतान मूर्ख होती है अथवा व्यक्ति पुत्रहीन होता है (प्रायः संतति के कारण दुःखी एवं परिश्रान्त रहता है)।

 

६. यदि लग्न में सूर्य हो तो व्यक्ति तीक्ष्ण बुद्धि (किसी बात को शीघ्र समझ लेने वाला) होता है।

 

७. यदि लग्न में सूर्य हो तो व्यक्ति कम वाचाल करने वाला अर्थात कम बात करने वाला, सदैव प्रवास (यात्रा-पर्यटन-घुमक्कड़ी) करता रहता है तथा सुखी रहता है।

 

८. यदि लग्न में सूर्य अपनी उच्च राशि (मेष) का हो तो व्यक्ति कीर्तिमान (लोकप्रिय तथा यशस्वी) व स्वाभिमानी एव तेजस्वी होता है।

 

९. यदि लग्न में सूर्य अपनी उच्च राशि (मेष) का हो और उस पर बलवान ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक विद्वान होता है तथा क्रमांक ८ में बताए गए सभी फल में वृद्धि करता है।

 

१०. यदि लग्न में सूर्य अपनी नीच राशि (तुला) का हो तो व्यक्ति प्रतापवान (रौबीला तथा दबंग), ज्ञानद्वेषी (अध्ययन, सत्संग, ज्ञानार्जन आदि से द्वेष करने वाला), दरिद्र (धन से हीन, साधन हीन) तथा अंधक (मंद दृष्टि अथवा काना) होता है।

 

११. यदि लग्न में सूर्य अपनी नीच राशि (तुला) का हो और उस ओर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो क्रमांक १० में बताए गए फल में कमी होती है अर्थात ऐसा व्यक्ति ज्ञानद्वेषी, दरिद्र एवं मंद दृष्टि वाला आदि फल नही होता है अथवा दोष कम हो जाता है।

 

१२. यदि सूर्य लग्न में सिंह राशि का होकर अपने ही नवांश (नवमांश कुंडली में भी सिंह राशि का सूर्य) का हो तो व्यक्ति उच्चपद पर आसीन (मुख्य, प्रधान या मुखिया) होता है तथा मान-सम्मान प्राप्त करता है और ऐश्वर्य युक्त होता है।

 

१३. यदि कर्क राशि का सूर्य लग्न में हो तो व्यक्ति ज्ञानी होता है किंतु साथ ही रोगी तथा बुद्बुदाक्ष (बुलबुले की तरह नेत्र वाला अथवा उसके नेत्रों के ढेले बड़े-बड़े तथा बाहर को निकले हुए) होता है और ऐसे व्यक्तियों को रक्तदोष व चर्मरोग होने की संभावना रहती है।

 

सूत्र क्रमांक संख्या १३ की उदाहरण कुंडली

सूत्र क्रमांक संख्या १३ की उदाहरण कुंडली

 

१४. यदि लग्न में सूर्य मकर राशि का हो तो व्यक्ति को हिर्दय रोग (दिल की बीमारी) व लकवा आदि होने की संभावना रहती है।

 

१५. यदि लग्न में सूर्य मीन राशि का हो तो ऐसा व्यक्ति स्त्रियों से अधिक संपर्क में रहता है तथा ऐसे व्यक्ति विलास मुक्त स्वभाव वाले होते हैं।

 

१६. यदि सूर्य लग्न में कन्या राशि का हो तो व्यक्ति को कन्या संतति अधिक होती है तथा ऐसे व्यक्तियों के जीवन में पत्नी सुख का अभाव होता है और ऐसे व्यक्ति कृतघ्न (अपने प्रति किए गए अहसान को न मानने वाले) होते हैं।

 

१७. यदि लग्न में सूर्य स्वराशि (सिंह राशि) का हो तो जो कि सिंह लग्न की पत्रिका में ही संभव है तो व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है साथ ही यदि शुभ ग्रहों से सूर्य युत हो तो व्यक्ति को उच्च पद की प्राप्ति होती है।

 

१८. यदि लग्न में सूर्य नीच राशि (तुला) का हो या शत्रु राशि का हो और उसके साथ पाप ग्रह बैठे हों तो व्यक्ति को ३ वर्ष की आयु में विशेष कष्ट होता है किंतु इस योग में यदि शुभ ग्रहों की दृष्टि सूर्य पर हो तो कष्ट नही होता है।

 

सूत्र क्रमांक संख्या १८ की उदाहरण कुंडली

सूत्र क्रमांक संख्या १८ की उदाहरण कुंडली

 

जय श्री राम।

 

Astrologer:- Pooshark Jetly

Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)

Mobile:- 7007245896, 9919367470

Email:- pooshark@astrologysutras.com

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