हनुमान जी की उपासना कब करनी चाहिए

हनुमान जी की उपासना कब करनी चाहिए

 

हनुमान जी की उपासना कब करनी चाहिए

 

सर्वसाधारण और अधिकतर महात्माओं के मुखारविन्द से सुनने में आता है कि “सवा पहर दिन चढ़ जाने के पहले श्री हनुमान जी का नाम-जप तथा हनुमान चालीसा का पाठ नही करना चाहिए” क्या यह बात यथार्थ है?? इसमें कितनी सच्चाई है?? चलिए इस विषय पर मैंने अपने गुरु से जो सीखा व जाना वह आप सभी के समक्ष रखता हूँ:-

 

सर्वप्रथम तो मैं अपने आराध्य श्री हनुमान जी के चरण कमलों में नमन करता हूँ कि उन्होंने मुझ जैसे तुच्छ दास को इस योग्य समझा कि मैं इस विषय पर लोगों की शंका का समाधान कर सकूँ, आज तक इस दास को न तो किसी ग्रंथ में ऐसा कहीं प्रमाण मिला है कि उपासक को किसी उपास्य देव के स्तोत्रों का पाठ या उनके नाम का जप आदि प्रातः काल सवा पहर तक न कर के उसके बाद करना चाहिए अपितु प्रत्येक ग्रंथ पर इसी बात का प्रमाण मिलता है कि सदा और निरंतर तैल धारावत् अजस्त्र, अखंड भजन-स्मरण करना चाहिए यथा:-

 

कवित्तरामायण
रसना निसि बासर राम रटौ!
सदा राम जपु राम जपु।
जपहि नाम रघुनाथ को चर्चा दूसरी न चालू।
तुलसी तू मेरे कहे रट राम नाम दिन-रात्रि।

 

इसी प्रकार श्री हनुमान जी के संबंध में भी सदा-सर्वदा भजन करने का ही प्रमाण मिलता है यथा:-

 

मर्कटाधीस मृगराज बिक्रम महादेव मुद मंगलालय कपाली।
सिद्ध सुर बृंद जोगीन्द्र सेवित सदा, दास तुलसी प्रनत भय तमारी।।

 

पुनः—-

 

मंगलागार संसारभारापहर बानराकारबिग्रह पुरारी।
राम संभ्राज सोभा सहित सर्बदा, तुलसी मानस रामपुर बिहारी।।

 

कदाचित् किसी को श्री हनुमान जी के इस वचन का ध्यान आ गया हो:-

 

प्रात जो लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिले अहारा।।

 

परंतु कुछ अज्ञानी लोगों ने इसका गलत भावार्थ निकाल दिया जब कि यहाँ “हमारा” शब्द का संबंध ऊपर की चौपाई के “कपिकुल” अर्थात वानर योनि से है, न कि अपने शरीर (श्री हनुमान विग्रह) से वहाँ हनुमान जी कहते हैं:-

 

कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।

 

अर्थात् विभीषण जी! आप अपने आपको राक्षस कुल का मानकर भय मत करें बताइए मैं ही कौन से बड़े श्रेष्ठ कुल का हूँ, वानर योनि तो चंचल और पशु होने से प्रत्येक प्रकार से हीन है हमारे कुल (वानर) का अगर कोई प्रातः काल नाम ले ले तो उस दिन उसे आहार का ही योग नही लगता:–

 

अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।
किन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे विलोचन नीर।।

 

अर्थात:- ऐसे अधम कुल में मैं हूँ किंतु सखा! सुनिए, मुझ पर श्री राम जी ने कृपा की है इस विरद को स्मरण कर कहते-कहते श्री हनुमान जी के नेत्रों से आँसू भर आए अतः “हमारा” शब्द का भाव यह है कि कुल तो हमारा ऐसा नीच है कि “वानर” शब्द का ही प्रातः मुँह से निकलना अच्छा नही माना जाता परंतु उसी योनि में उत्पन्न मैं जब प्रभु का कृपा पात्र बना लिया गया तब तो—

 

राम कीन्ह आपन जब हीं तें, भयउँ भूषण तबही तें।।

 

मेरे हनुमान, महाबीर, बजरंगी, पवनकुमार आदि नाम प्रातः स्मरणीय हो गए इसका प्रमाण कुछ इस प्रकार से है—

 

अशुभ होई जिन्ह के सुमिरन तें बाहर रीछ बिकारी।
बेद बिदित पावन किए ते सब महिमा नाथ तिहारी।।

 

अतएव श्री रामायण जी के उपर्युक्त पदों से श्री हनुमान जीका नाम प्रातः काल जपने का निषेध कदापि सिद्ध नही होता, उसका तात्पर्य “वानर” शब्द से ही है जो कुल की न्यूनता का घोतक है, स्वम् श्री हनुमान जी की न्यूनता का नहीं, कहीं-कहीं लोग ऐसा तर्क करते हैं कि श्री हनुमान जी रात्रि में जगने के कारण से प्रातः निद्रा मग्न रहते हैं, इसलिए सवा पहर वर्जित है, सो न तो इसका भी कोई प्रमाण इस तुच्छ दास को मिला है और न ही यह बात उचित मालूम होती है कि योगिराज, ज्ञानियों में अग्रगण्य श्री हनुमान जी प्रहर भर दिन चढ़ने तक निद्रा मग्न रहते हैं अथवा उनका अमित दिव्य विग्रह और अमोघ शक्ति वपु एक रूप से सेवा में तत्पर रहते हुए दूसरे अनेक रूपों से अपने भक्तों की सेवा स्वीकार करने में असमर्थ रहता है, जहाँ प्रेमपूर्वक श्री राम नाम का जप और श्री रामायण का पाठ होता है, वहाँ तो श्री मारुति जी सदा ही विद्यमान रहते हैं चाहे वह प्रातः काल हो या अन्य कोई काल हो, फिर इस झगड़े में पड़कर तो श्री हनुमान जी के आराम-विश्राम के लिए सवा प्रहर भगवद्भजन भी छोड़ना पड़ेगा, जिसका छूटना ही उनकी दृष्टि में विपत्तिजनक है—

 

कह हनुमान बिपति प्रभु सोई। जब तब सुमिरन भजन न होई।।

 

अतएव इस दीन तुच्छ दास के तुच्छ विचार से तो सवा प्रहर क्या, एक क्षण भी भाग्यवानों को श्री हनुमत् नाम-भजन और पाठ आदि से विमुख नही रहना चाहिए, प्रातः काल का समय तो भजन के लिए ही है, रुद्रांश श्री हनुमान जी सदा और सब काल में वंदनीय हैं।

 

।।ॐ अंजनियाय विद्यमहे वायुपुत्राय धी मही तन्नो हनुमत् प्रचोदयात।।

 

जय श्री राम।
जय सिया राम।
जय केसरी नंदन।

 

Astrologer:- Pooshark Jetly

Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)

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