पोखराज धारण विधि व लग्न अनुसार उपयोगिता

पोखराज धारण विधि व लग्न अनुसार उपयोगिता

 

पोखराज रत्न

पोखराज रत्न

 

भाग:-१

 

 

पोखराज बृहस्पति का रत्न होता है किंतु इस संबंध में कुछ मतभेद देखने को मिलता है कि बृहस्पति का रत्न श्वेत अर्थात सफेद पोखराज है या पीला इस मतभेद को दूर करने के लिए मैं बृहज्जातक के अध्याय 2 के पंचम श्लोक की व्याख्या करता हूँ:-

 

“वर्णास्ताम्रसिताती रक्त हरितव्यापीत चित्रा सीता”

“बहवयम्बवग्निज केशवेंद्र शाचिका: सूर्यादिनाथा: क्रमात्””

 

अर्थात:- लाल, श्वेत, रक्त वर्ण, हरा, पीलापन लिए हुए तरह-तरह के रंग और काला ये सूर्य से क्रमानुसार शनि तक के रंग हैं, आचार्य वरामिहिर जी के इस श्लोक से यह स्पष्ट है कि बृहस्पति का रंग “पीला” है अतः बृहस्पति का रत्न “पीला पोखराज” है।

 

पोखराज कौन धारण कर सकता है:-

 

जिनकी कुंडली में बृहस्पति शुभ भावों के स्वामी हों उन जातक/जातिका को समयानुसार या आवश्यकतानुसार पीला पोखराज धारण करना शुभ फलदाई होता है तथा जिनकी कुंडली में बृहस्पति अशुभ भावों के स्वामी हों उनको पीला पोखराज नही धारण करना चाहिए।

 

धारण विधि:-

 

पोखराज धारण विधि

पोखराज धारण विधि

 

पोखराज को स्वर्ण की अँगूठी में बनवाना सर्वश्रेष्ठ रहता है पोखराज 3 रत्ती से कम धारण नही किया जाता है और यदि 7 या 12 रत्ती का पोखराज धारण किया जाए तो यह और भी शुभ रहता है कुछ विद्वानों का मत है कि पोखराज 6, 11 व 15 रत्ती का धारण नही करना चाहिए।

शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार को सूर्यास्त से 1 घंटे पूर्व श्रद्धापूर्वक “ॐ बृं बृहस्पतये नमः” मंत्र का 19,000 की संख्या में मंत्र जाप कर के तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिए।

 

नोट:- जो व्यक्ति पोखराज धारण करने में असमर्थ हों वह पीला मोती, पीला जरकन, सुनैला, हल्दी की गाँठ, केले की जड़ भी धारण कर सकते हैं।

 

विशेष:- पोखराज के साथ हीरा, नीलम, गोमेद, वैदूर्य धारण नही करना चाहिए।

 

लग्न अनुसार पोखराज की उपयोगिता:-

 

पोखराज धारण करने के लाभ

पोखराज धारण करने के लाभ

 

मेष लग्न के लिए बृहस्पति नवम व द्वादश भावों के स्वामी होते हैं नवम भाव अर्थात त्रिकोण का स्वामी होने के कारण से बृहस्पति को इस लग्न के लिए शुभ माना गया है अतः पोखराज धारण करने से जातक को बुद्धि, बल, ज्ञान, उच्च शिक्षा, धन, मान-प्रतिष्ठा तथा भाग्य में उन्नति प्राप्त होती है, बृहस्पति की महादशा में यह रत्न और भी शुभ फलदाई हो जाता है तथा यदि इसे लग्नेश मंगल के रत्न मूँगा के साथ धारण किया जाए तो यह और भी शुभ फलदाई हो जाता है।

 

वृषभ लग्न के लिए बृहस्पति अष्टम और एकादश भाव के स्वामी होते हैं किंतु वृषभ लग्न के स्वामी शुक्र और बृहस्पति में नैसर्गिक शत्रुता है तथा वृषभ लग्न के लिए बृहस्पति अष्टमेश होने के कारण से भी शुभ नही होता फिर भी यदि वृषभ लग्न की कुंडली में यदि बृहस्पति द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम व लग्न में स्थित हों तो बृहस्पति की दशा में पोखराज धारण करने से धन लाभ में वृद्धि होती है।

 

मिथुन लग्न के बृहस्पति सप्तम और दशम भाव के स्वामी होने के कारण से केन्द्राधिपति दोष से दूषित हो जाते हैं फिर भी यदि मिथुन लग्न की कुंडली में बृहस्पति यदि लग्न, द्वितीय, एकादश या केंद्र अथवा त्रिकोण में स्थित हों तो बृहस्पति की दशा में पोखराज धारण करने से संतान सुख, समृद्धि में वृद्धि व धन लाभ की प्राप्ति होती है परंतु स्वास्थ्य की समस्या निरंतर बनी रह सकती है क्योंकि मिथुन लग्न की कुंडली वालों के लिए बृहस्पति प्रवल मारकेश होते हैं।

 

कर्क लग्न वालों के लिए बृहस्पति षष्ठ और नवम भाव के स्वामी होते हैं नवम भाव अर्थात त्रिकोण के स्वामी होने के कारण से कर्क लग्न वालों के लिए बृहस्पति शुभ होते हैं अतः कर्क लग्न वालों के लिए पोखराज रत्न संतान सुख, ज्ञान में वृद्धि, भाग्योन्नति, पितृ सुख, ईश्वर भक्ति की भावना तथा धन में वृद्धि करता है यदि बृहस्पति की महादशा में इसे धारण किया जाए तो विशेष रूप से फलदाई होता है तथा यदि पोखराज के साथ मोती या मूँगा धारण किया जाए तो यह बेहद शुभ सिद्ध होता है।

 

पोस्ट की लंबाई को ध्यान में रखते हुए सिंह से मीन लग्न तक के लिए पोखराज की उपयोगिता जल्द ही अगले भाग में प्रकाशित करूँगा।

 

जय श्री राम।

Astrologer:- Pooshark Jetly

Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)

Mobile:- 9919367470

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