नक्षत्र व उनके नाम:-

नक्षत्र क्या है:-

आप सभी ने ज्योतिष में ग्रहों के साथ-साथ नक्षत्रों का नाम बहुत सुना होगा लेकिन नक्षत्र है क्या यह बहुत ही कम लोगों को पता होगा तो मैं आप सभी को सरल शब्दों में यह बताने का प्रयास करता हूँ कि आखिर नक्षत्र क्या है।

तारागण में से ही कतिपय को महर्षियों ने नक्षत्र नाम से पुकारा है, यदि हमें एक जगह से दूसरी जगह पर जाना पड़े और उस स्थान तक पहुंचने के लिए सड़क भी हो तो जब तक उस सड़क का विभाग किसी रीति से जैसे कोस या मील द्वारा न किया जाए तब तक यह कहना कि अमुक घटना उस सड़क पर चलते हुए किस स्थान में हुई थी बड़ा ही कठिन होगा इसलिए सड़कों को माइलों में विभक्त करने की प्रणाली है और प्रति माइल को भी चार भागों में बांटकर १/२, १/४ इत्यादि चिन्ह दे दिया गया इन चिन्हों के द्वारा किसी घटना के स्थान को बड़ी ही सरलता से बतलाया जा सकता है जैसे अमुक घटना इतनी माइल तय करने पर दसवें माइल के चतुर्थांश या अर्धांश पर हुई।

अतएव महर्षियों ने आकाश-मंडल के तारों की पूर्व-पश्चिम गति से २७ भागों में विभक्त किया है तथा प्रति भाग का नाम नक्षत्र रखा है इसलिए आप यदि ध्यान देकर देखेंगे तो यह प्रतीत होगा कि इन २७ नक्षत्रों की एक माला पृथ्वी के चारों ओर (पूर्व से पश्चिम) दिशा की ओर पड़ी हुई है।

कई तारों के समुदाय को ही नक्षत्र कहते हैं उन तारों को एक दूसरे से युक्ति पूर्वक रेखा द्वारा मिला देने से कहीं अश्व, कहीं शिर, कहीं गाड़ी और कहीं सर्पादि का चिन्ह बन जाता है (1. अश्विनी, 2. भरणी, 3. कृत्तिका , 4. रोहिणी, 5. मृगशिरा, 6. आद्रा, 7. पुनर्वसु, 8. पुष्य, 9. अश्लेषा , 10. मघा, 11. पूर्वाफाल्गुनी, 12. उत्तराफाल्गुनी, 13. हस्त, 14. चित्रा, 15. स्वाती, 16. विशाखा, 17. अनुराधा, 18. ज्येष्ठा, 19. मूल, 20, पूर्वाषाढा, 21. उत्तराषाढा, 22. श्रवण , 23. धनिष्ठा, 24. शतभिषा, 25. पूर्वाभाद्रपद, 26. उत्तराभाद्रपद, 27. रेवती।) यह 27 नक्षत्रों के नाम हैं।

तात्पर्य यही है कि इस भूमण्डल के चारों तरफ जो तारागण है जिन्हें महर्षियों ने २७ नक्षत्रों के नाम से पुकारा उनके द्वारा आकाश मंडल में ग्रहों की स्थिति का ठीक-ठीक बोध होता है जैसे सड़क के पथिक को मील चिन्ह से कहना सुगम होता है कि अमुक दूरी पर पहुंच गया, उसी तरह ज्योतिषियों को यह कहना सरल होगा कि अमुक ग्रह, अमुक समय में, अमुक नक्षत्र में था या है।

यदि इसको दूसरे शब्दों में समझें तो पुराणों में इन 27 नक्षत्रों का उल्लेख प्रजापति दक्ष की पुत्रियों के रूप में किया है जिनका विवाह चन्द्रमा के साथ हुआ था, पुराणों के अनुसार ऋषि मुनियों ने आकाश का विभाजन 12 बराबर हिस्सों में कर दिया था जिन्हें हम 12 अलग-अलग राशियों मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन के नाम से जानते हैं इनके और सूक्ष्‍म अध्‍यन के लिए ऋषि मुनियों ने इन्हें 27 बराबर भागों में बांट दिया, जिसके परिणाम स्वरुप एक राशि में 2.25 नक्षत्र आते हैं, चन्द्रमा पृथ्वी की एक परिक्रमा को 27.3 अर्थात लगभग 28 दिन में पूरी करता है वैदिक ज्योतिषी के अनुसार चन्द्रमा प्रतिदिन लगभग एक भाग (नक्षत्र) की यात्रा करता है नक्षत्रों की गढ़ना के बिना सही फलकथन नही किया जा सकता है इसलिए नक्षत्र हमारे वैदिक ज्योतिष के सबसे महत्वपूर्ण अंग हैं।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
9919367470

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