होरा शास्त्र में द्वादश भावों की धर्म अर्थ काम मोक्ष के अनुरूप संक्षिप्त व्याख्या भाग-१

होरा शास्त्र में द्वादश भावों की धर्म अर्थ काम मोक्ष के अनुरूप संक्षिप्त व्याख्या भाग-१

 

होरा शास्त्र में द्वादश भावों की धर्म अर्थ काम व मोक्ष के अनुरूप संक्षिप्त व्याख्या

होरा शास्त्र में द्वादश भावों की धर्म अर्थ काम व मोक्ष के अनुरूप संक्षिप्त व्याख्या

 

जैसा कि आप सब जानते हैं कि प्रत्येक कुंडली मे १२ भाव होते हैं और यदि इन भावों को तीन-तीन के समूह में चार भागों में बाँटा जाए तो विभाजन निम्न प्रकार से होता है:-

 

१. धर्म त्रिकोण भाव:-  प्रथम, पंचम व नवम भाव को धर्म त्रिकोण भाव कहते हैं।

 

२. अर्थ त्रिकोण भाव:-  द्वितीय, षष्ठ व दशम भाव को अर्थ त्रिकोण भाव कहते हैं।

 

३. काम त्रिकोण भाव:-  तृतीय, सप्तम व एकादश भाव को काम त्रिकोण भाव कहते हैं।

 

४. मोक्ष त्रिकोण भाव:-  चतुर्थ, अष्टम व द्वादश भाव को मोक्ष त्रिकोण भाव कहते हैं।

 

इन स्थानों पर जो ग्रह तथा नक्षत्र होंगे वह अपने स्वभावानुसार उस व्यक्ति के कर्मों की गति स्पष्ट करते हैं उदाहरणार्थ:- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में अशुभ या पापी ग्रह, अर्थ व काम अर्थात इच्छाओं के स्थान में बैठे हैं तो उस व्यक्ति की इच्छायें व प्रवृत्ति उसी तरफ अधिक होंगी और उसकी इच्छाएँ व अर्थ रूपये-पैसे संबंधी कार्य उसी समय पूरे होंगे जब उस कुण्डली की गणना के अनुसार उन ग्रहों का समय आयेगा वहीं दूसरी ओर, यदि कोई व्यक्ति धर्म व मोक्ष की प्राप्ति चाहता है, तो उसकी कुण्डली की कुंडली मे शुभ ग्रह धर्म व मोक्ष वाले स्थानों में अवश्य ही बैठे होंगें।

 

कुंडली के धर्म त्रिकोण भाव

कुंडली के धर्म त्रिकोण भाव

 

अब कुंडली के प्रत्येक भावों का विश्लेषण उपरोक्त प्रकार से करते हैं, जैसा कि आप सब जानते हैं कि  इस संसार मे धर्म ही प्रधान है व्यक्ति धर्म का समुचित पालन करके ही जीवन के अंतिम उद्देश्य मोक्ष तक पहुँच सकता है
इस कारण से ही किसी भी कुंडली मे 1, 5, 9 स्थान को मूल त्रिकोण की संज्ञा दी गई है अतएव सर्वप्रथम धर्म भावों के बारे में विस्तार से जानते हैं:-

 

लग्न स्थान प्रथम धर्म त्रिकोण भाव:-

 

कुंडली का प्रथम धर्म त्रिकोण भाव

कुंडली का प्रथम धर्म त्रिकोण भाव

 

इस भाव से व्यक्ति की शरीर पुष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है इससे हमें शारीरिक आकृति, स्वभाव, वर्ण चिन्ह, व्यक्तित्व, चरित्र, मुख, गुण व अवगुण, प्रारंभिक जीवन विचार, यश, सुख-दुख, नेतृत्व शक्ति, व्यक्तित्व, मुख का ऊपरी भाग, के संबंध में ज्ञान मिलता है।

पंचम भाव द्वितीय त्रिकोण भाव:-

 

कुंडली का द्वितीय धर्म त्रिकोण भाव

कुंडली का द्वितीय धर्म त्रिकोण भाव

 

इस भाव से संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य शास्त्रों की रुचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यशनौकरी परिवर्तन आदि का विचार किया जाता है इससे हमें विद्या, विवेक, लेखन, मनोरंजन, संतान, मंत्र-तंत्र, प्रेम, सट्टा, लॉटरी, अकस्मात धन लाभ, पूर्वजन्म, गर्भाशय, मूत्राशय, पीठ, प्रशासकीय क्षमता, आय जानी जाती है।

नवम भाव तृतीय धर्म त्रिकोण भाव:-

 

कुंडली का तृतीय धर्म त्रिकोण भाव

कुंडली का तृतीय धर्म त्रिकोण भाव

 

इस भाव से आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, परदेश गमन, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताया जाता है इससे हमें धर्म, भाग्य, तीर्थयात्रा, संतान का भाग्य, साला-साली, आध्यात्मिक स्थिति, वैराग्य, आयात-निर्यात, यश, ख्याति, सार्वजनिक जीवन, भाग्योदय, पुनर्जन्म, मंदिर-धर्मशाला आदि का निर्माण कराना, योजना विकास कार्य, न्यायालय से संबंधित कार्य का विचार किया जाता है।

 

पोस्ट की लंबाई को ध्यान रखते हुए अगला भाग जल्द ही प्रकाशित होगा।

 

जय श्री राम।

 

ज्योतिर्विद प्रवीण सिंह परमार

Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)

Mobile:- 9415732067

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