शिवमहापुराण के अनुसार शिव जी का हनुमान जी के रूप में अवतार तथा उनके चरित्र का वर्णन

शिवमहापुराण के अनुसार शिव जी का हनुमान जी के रूप में अवतार तथा उनके चरित्र का वर्णन

 

शिवमहापुराण के अनुसार हनुमान जी के रूप में शिव जी का अवतार व हनुमान जी की लीलाएं

शिवमहापुराण के अनुसार हनुमान जी के रूप में शिव जी का अवतार व हनुमान जी की लीलाएं

 

शिवमहापुराण के शतरुद्रसंहिता में बीसवें अर्थात विंशोध्याय में शिव जी का हनुमान जी के रूप में अवतरित होना व उनके चरित्रों का विस्तृत वर्णन मिलता है शिवमहापुराण के अनुसार नंदीश्वर ने मुनियों से कहा:-

 

अतः परं श्रृणु प्रीत्या हनुमच्चरितं मुने।
यथा चकाराशु हरो लीलास्तद्रूपतो वरा:।।

अर्थात नंदीश्वर बोले हे मुने! अब इसके पश्चात् शिव जी ने जिस प्रकार हनुमान जी के रूप में अवतार लेकर मनोहर लीलाएं की उस हनुमच्चरित्र को प्रेमपूर्वक सुनिए।

चकार सुहितं प्रीत्या रामस्य परमेश्वरः।
तत्सर्वं चरितं विप्र श्रृणु सर्वसुखावहम्।।

 

अर्थात उन परमेश्वर ने प्रेमपूर्वक (हनुमद रूप से) श्रीराम का परम हित किया है, हे विप्र! सर्वसुखकारी उस संपूर्ण चरित्र का श्रवण कीजिए।

एकस्मिन्समये शम्भुरद्भुतोतिकर: प्रभु:।
ददर्श मोहिनी रूपं विष्णो: स हि वसेद्गुण:।।
चक्रे स्वं क्षुभितं शम्भु: कामबाणहतो यथा।
स्वं वीर्यं पातमायास रामकार्यार्थमीश्वरः।।
तद्विर्यं स्थापयामासु: पत्रे सप्तर्षयश्च ते।
प्रेरिता मनसा तेन रामकार्यार्थमादरात्।।

 

अर्थात एक बार अत्यंत अद्भुत लीला करने वाले तथा सर्वगुण संपन्न उन भगवान शिव ने जब विष्णु के मोहिनी रूप को देखा तो उस मोहिनी रूप को देखते ही कामबाण से आहत की भाँति शम्भु ने अपने को विक्षुब्ध कर दिया और उन ईश्वर ने श्रीराम के कार्य के लिए अपने तेज का उत्सर्ग कर दिया शिव जी के मन की प्रेरणा से प्रेरित होकर सप्तर्षियों ने उनके तेज को राम कार्य हेतु आदरपूर्वक पत्ते पर स्थापित कर दिया तत्पश्चात उन महर्षियों ने शभु के उस तेज को श्री राम के कार्य हेतु गौतम की कन्या अंजनी में कान के माध्यम से स्थापित कर दिया, समय आने पर वह शम्भुतेज महान बल तथा पराक्रम वाला और वानर शरीर वाला होकर हनुमान के नाम से प्रकट हुआ।

 

शिवमहापुराण के अनुसार वे महाबलवान कपीश्वर हनुमान जब शिशु ही थे उसी समय प्रातः काल उदय होते हुए सूर्य बिम्ब को छोटा फल जानकर निगल गए थे तब देवताओं की प्राथना से उन्होंने सूर्य को उगल दिया, उन्हें महाबली शिवावतार जानकर देवताओं तथा ऋषियों के प्रदत्त वरों को उन्होंने प्राप्त किया तत्पश्चात् अत्यंत प्रसन्न हनुमान जी अपनी माता के निकट गए और आदरपूर्वक उनसे वह वृत्तांत कह सुनाया, इसके बाद माता की आज्ञा से नित्य प्रति सूर्य के पास जाकर धैर्यशाली हनुमान जी ने बिना यत्न के ही उनसे सारी विद्याएं पढ़ लीं और उसके बाद माता की आज्ञा प्राप्त कर रुद्र के अंशभूत कपिश्रेष्ठ हनुमान जी सूर्य की आज्ञा पर उनके अंश से उत्पन्न हुए सुग्रीव के पास गए, सुग्रीव अपने ज्येष्ठ भ्राता वालि से तिरस्कृत हो ऋष्यमूक पर्वत पर हनुमान जी के साथ निवास करने लगे और तब हनुमान जी को उन्होंने अपने मंत्री होने की उपाधि दी।

 

शिव जी के अंश से उत्पन्न परम् बुद्धिमान कपिश्रेष्ठ हनुमान जी ने सब प्रकार से सुग्रीव का हित किया और लक्ष्मण जी के साथ वहाँ आए हुए अपहृत पत्नी वाले दुःखी प्रभु श्री राम जी के साथ उनकी सुखदाई मित्रता करवाई, श्री रामचंद्र जी ने भाई की स्त्री के साथ रमण करने वाले महापापी एवं अपने को वीर मानने वाले कपिराज वालि का वध कर दिया।

 

ततो रामाज्ञया तात हनूमान्वारेश्वर:।
स सीतान्वेषणं चक्रे बहुभिर्वानरेः सुधी:।।
ज्ञात्वा लंकागतां सीतां गतस्तत्र कपीश्वरः।
द्रुतमुल्लंघ्यं सिंधु तमनिस्तीर्यं परै: स वै।।

 

अर्थात नन्दीश्वर जी कहते हैं हे तात! तदन्तर वे महाबुद्धिमान वानरेश्वर हनुमान श्री रामचन्द्र जी की आज्ञा से बहुत से वानरों के साथ सीता माता की खोज में लग गए और सीता माता को लंका में विद्यमान जानकर वे कपीश्वर दूसरों के द्वारा न लांघे जा सकने वाले समुद्र को बड़ी शीघ्रता से लांघ लिया और वहाँ जाकर उन्होंने पराक्रम युक्त अद्भुत कार्य किया और जानकी माता को प्रीति पूर्वक अपने प्रभु का उत्तम (मुद्रिका रूप) चिन्ह प्रदान किया तथा जानकी माता के प्राणों की रक्षा करने वाला रामवृत्त सुनाकर उन वीर वानर नायक ने शीघ्र ही उनके समस्त शोकों का निवारण कर दिया व रावण की अशोकवाटिका उजाड़कर बहुत से राक्षसों का वध कर लंका में महान उपद्रव किया, नंदीश्वर जी कहते हैं कि:-

 

यदा दग्धो रावणेनावगुण्ठ्य वसनानि च।
तैलाभ्यक्तानि सुदृढं महावलवता मुने।।

उत्प्लुत्योत्प्लुत्य च तदा महादेवांशज: कपि:।
ददाह लंकां निखिलां कृत्वा व्याजं तमेव हि।

 

अर्थात हे मुने! जब महाबलशाली रावण ने तेल से सने हुए वस्त्रों को उनकी पूँछ में दृढ़तापूर्वक लपेटकर उसमें आग लगा दी तब महादेव के अंश से उत्पन्न हनुमान जी ने इसी बहाने से कूद-कूद कर समस्त लंका को जला दिया तदनन्तर वे कपिश्रेष्ठ वीर हनुमान केवल विभीषण के घर के छोड़कर सारी लंका जला कर के समुद्र में कूद पड़े और वहाँ अपनी पूँछ बुझाकर शिव के अंश से उत्पन्न वे समुद्र के दूसरे किनारे पर आए और प्रसन्न होकर श्री राम जी के पास गए, सुंदर वेग वाले कपिश्रेष्ठ हनुमान जी ने शीघ्रतापूर्वक श्री राम के निकट जाकर उन्हें सीता जी की चूड़ामणि प्रदान की तत्पश्चात श्री राम जी की आज्ञा से वानरों के साथ उन बलवान वीर हनुमान जी ने अनेक विशाल पर्वतों को लाकर समुद्र पर सेतु बना दिया तब श्री राम जी ने विजय प्राप्त करने की इच्छा से शिवलिंग को यथाविधि प्रतिष्ठित कर उसका पूजन किया व पूज्यतम शिव जी से विजय का वरदान प्राप्त कर के समुद्र पार कर वानरों के साथ लंका को घेर कर राक्षसों से युद्ध किया।

शिवमहापुराण के अनुसार:-

 

जघानाथासुरान्वीरो रामसैन्यं ररक्ष स:।
शक्तिक्षतं लक्ष्मणं च संजीविन्या ह्यजीवयत्।।

 

अर्थात उन वीर हनुमान जी ने अनेक राक्षसों का वध किया और श्री रामचन्द्र जी की सेना की रक्षा की तथा शक्ति से घायल लक्ष्मण जी को संजीवनी बूटी के द्वारा पुनः जीवित कर दिया।

 

सर्वथा सुखिनं चक्रे सरामं लक्ष्मणं हि स:।
सर्वसैन्यं ररक्षासौ महादेवात्मज: प्रभु:।।

 

अर्थात इस प्रकार से महादेव के अंश प्रभु हनुमान जी ने लक्ष्मण सहित श्रीराम जी को सब प्रकार से सुखी बनाया और संपूर्ण सेना की रक्षा करी, महान बल धारण करने वाले उन कपि ने बिना श्रम के परिवार सहित रावण का विनाश किया और देवताओं को सुखी बनाया साथ ही उन्होंने महिरावण नामक राक्षस को मारकर लक्ष्मण सहित श्री राम जी की रक्षा कर के उसके स्थान (पाताल लोक) से अपने स्थान पर ले आए, इस प्रकार श्री हनुमान जी ने सब प्रकार से श्री राम जी का कार्य शीघ्र ही संपन्न किया, असुरों का वध किया एवं नाना प्रकार की लीलाएं की, सीता-राम को सुख देने वाले वानर राज ने स्वम् श्रेष्ठ भक्त होकर भूलोक में रामभक्ति की स्थापना की, शिवमहापुराण के अनुसार हनुमान जी लक्ष्मण जी के प्राणों का रक्षक, सभी देवताओं का गर्व चूर करने वाले, रुद्र के अवतार, भगवत्स्वरूप और भक्तों का उद्धार करने वाले, सदा राम कार्य सिद्ध करने वाले, लोक में रामदूत नाम से विख्यात, दैत्यों का संहार करने वाले भक्तवत्सल हैं नंदीश्वर जी कहते हैं:-

 

इति ते कथितं तात हनुमच्चरितं वरम्।
धन्यं यशस्यमायुष्यं सर्वकामफलप्रदम्।।

य इदं श्रृणुयाद्भक्त्या श्रावयेद्वा समाहित:।
स भुक्तवेहाखिलान्कामान् अन्ते मोक्षं लभेत्परम्।।

 

अर्थात नंदीश्वर जी कहते हैं हे तात! इस प्रकार मैंने श्री हनुमान जी के श्रेष्ठ चरित्र को कहा जो धन, यश, आयु तथा संपूर्ण कामनाओं का फल देने वाला है जो भी सावधान होकर भक्तिपूर्वक इसे सुनता या सुनाता है वह इस लोक में सभी सुखों को भोगकर अंत में परम मोक्ष को प्राप्त करता है।

 

जय श्री सीता-राम।

जय श्री राम।

जय आंजनेय हनुमान।

 

Astrologer:- Pooshark Jetly

Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)

Mobile:- 9919367470, 7007245896

Email:- pooshark@astrologysutras.com

0 replies

Leave a Reply

Want to join the discussion?
Feel free to contribute!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *