लग्न में बैठे शनि का फल भाग १
लग्न में बैठे शनि का फल भाग १
समस्त नव ग्रहों में यदि कोई ग्रह है जो कि सबसे ज्यादा निंदा का पात्र बनता है तो वो बेचारा शनि ही है जब भी किसी की कुंडली में सबसे बुरे ग्रह के बारे में चर्चा करी जाए तो सबसे पहले लोग शनि को ही देखते हैं किंतु मेरा ऐसा मत व अनुभव है कि “लग्न में यदि तुला, धनु, मकर, कुंभ और मीन राशि का शनि हो तो वो बेहद शुभ फलदाई होता है” फलदीपिका व अन्य ग्रंथों ने भी शनि को इन राशियों में बेहद शुभ बताया है तो आज मैं शनि के लग्न में स्थित होने के फल पर अपना अनुभव व मत आप लोगों के साथ बाँटता हूँ।
मेरा ऐसा मानना है कि किसी भी ग्रह के फल को जानने के पूर्व उसके कारक तत्व के बारे में जानकारी होनी चाहिए जो कि मैं पहले की पोस्ट में बता चुका हूँ शनि विरक्ति, नीरसता का कारक होता है लग्न में बैठा शनि व्यक्ति को थोड़ा शर्मीला भी बनाता है ऐसे व्यक्ति अपने टैलेंट का सही तरह से इस्तेमाल नही करते, संकोच कर जाते हैं उदाहरण के तौर पर एक कक्षा में बैठा व्यक्ति जिसे सब कुछ आता है फिर भी वो अध्यापक के कहने पर जल्दी हाथ नही उठाता, शनि स्थायित्व अवश्य देता है ऐसे व्यक्ति अपने कर्तव्य को हमेशा पूरा करते हैं किंतु ऐसे व्यक्तियों की कुंडली में धोखा मिलने की भी संभावना अधिक हो जाती है साथ ही ऐसे व्यक्ति खुद से आगे बढ़कर अपना टैलेंट नही दिखाते इनको प्रेरित करना होता है।
बहुत से लोगों जिनकी कुंडली में लग्न में शनि स्थित हो उनके जीवनसाथी से मैंने सुना है ये अपने परिवार को तो छोड़िए दूसरों के लिए ही कर दें यही बहुत बड़ी बात है कहने का मतलब यह है कि इनको काम बता दीजिए तो बड़ी बखूबी से कर देते हैं लेकिन उम्मीद करिए कि खुद की इच्छा से करें तो इसकी संभावना कम ही है अर्थात ऐसे व्यक्ति निर्णय लेने में जल्दी participate नही लेते कारण शनि को दासत्व कहा गया है, दासता देता है।
शनि यदि धनु, कुंभ व मीन का हो तो व्यक्ति बहुत धार्मिक होते है और यही शनि यदि तुला या मिथुन का हो तो व्यक्ति को वायु जनित रोग देते हैं क्योंकि यह दोनों राशि ही वायु तत्व की है और शनि भी वायु तत्व प्रधान है ऐसे में जब वायु तत्व का ग्रह वायु तत्व की राशि में बैठता है तो वायु जनित रोग देता है ऐसे लोगों को उम्र बढ़ते-बढ़ते गठिया व जोड़ो के दर्द की शिकायत हो जाती है, लग्न में बैठा शनि व्यक्ति को मेहनती बनाता है, लोगों का कहना है कि शनि आलसी है जब कि मैं शनि को आलसी नही मानता क्योंकि एक होता है काम से जी चुराना तो एक होता है कि काम को perfection देना ऐसे व्यक्ति उस कार्य को perfection देने के चक्कर में अपना काफी समय देते हैं और जब कि बाकी लोग उस काम को कम की तरह ही जल्दी से खत्म कर देते हैं किन्तु ऐसा तभी संभव है जब शनि पीड़ित न हो, लग्न में बैठा शनि स्वास्थ के लिए उतना अच्छा नही होता यदि शनि की दृष्टि भी लग्न पर हो और सूर्य के साथ हो तो हम कह सकते हैं कि ऐसा शनि सेहत के लिए अच्छा नही है।
लग्न में बैठा शनि आपके तीसरे भाव को देखता है जो दर्शाता है कि ऐसा व्यक्ति जो ठान ले उसे पूरा कर के ही छोड़ता है और मेहनती होता है जैसा कि मैंने ऊपर भी लिखा इसकी सातवीं दृष्टि सप्तम भाव पर आती है जो यह बताता है कि ऐसे जातक का दाम्पत्य जीवन मिला-जुला रहता है किंतु यदि सप्तमेश भी शनि के प्रभाव में आ जाए तो यह स्थिति और खराब हो जाती है साथ ही सप्तम भाव मित्रता का भी है तो ऐसे व्यक्ति के मित्र सीमित संख्या में होते हैं और सप्तम भाव रोजगार का भी है तो नौकरी में विलंब से ही स्थायित्व मिलता है साथ ही शनि दशम भाव को भी देखेगा तो ऐसे व्यक्ति जीवन के उत्तरार्ध में सफलता को प्राप्त करते हैं कहने का आशय यह है कि जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जाती है उनको सफलता मिलती जाती है साथ ही ऐसे व्यक्तियों का उनके पिता से वैचारिक मतभेद भी रहता है यह स्थिति तब और भी खराब हो जाती है जब शनि और सूर्य की युति या प्रत्युति हो, ऐसे व्यक्ति कुछ उस तरह से दान-पुण्य करते हैं कि किसी को पता भी नही चल पाता कि इन्होंने क्या दान किया है लग्न में बैठा शनि व्यक्ति को स्वाभिमानी भी बनाता है और क्षणिक क्रोध भी देता है।
यह पोस्ट अधिक लंबी न हो इसलिए इस पोस्ट को यहीं विराम देता हूँ समय मिलने पर इसका दूसरा भाग लिखूँगा जिसमें आप सभी को शनि की विभिन्न स्थितियों के अनुसार लग्न में स्थित होने का फल बतायूँगा।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
Mobile:- 9919367470
Nice post
Thank you sir