लग्न कुंडली के षष्ठ भाव में सूर्य का फल–Astrology Sutras
लग्न कुंडली के षष्ठ भाव में सूर्य का फल–Astrology Sutras
यदि लग्न कुंडली के षष्ठ भाव में सूर्य हो तो ग्रंथकारों का मत है कि ऐसे व्यक्ति विख्यात, गुणवान, बलवान, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले, सतोगुणी, उच्च अधिकारी या उच्च अधिकारी के बेहद खास, दंड देने का अधिकार रखने वाले, सुंदर वाहनों से युक्त, सुख विशिष्ट, तेजस्वी, बुद्धिमान, निष्पाप, अनेक वाहनों का सुख प्राप्त करने वाले व तेजस्वी होते हैं साथ ही ऐसे व्यक्ति अत्यंत धनी होते हैं और इनके अनेक शत्रु होते हैं, यदि षष्ठ भाव में सूर्य हो तो ऐसे व्यक्तियों के नेत्र में अवश्य ही पीड़ा रहती है।
मंत्रेश्वर महाराज जी ने फलदीपिका में कहा है कि यदि षष्ठ भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति विख्यात तथा यशस्वी राजा होता है साथ ही सर्वगुणसम्पन्न, संपत्तिवान तथा विजयी होता है, मानसागरी में लिखा है कि यदि षष्ठ भाव में सूर्य हो तो:-
अरिगृहगतमानौ योगशीलोमतिस्थो निजजन हितकारी ज्ञातिवर्गप्रमोदी।
कृशतनु: गृहमेघी चारुमूर्ति: विलासी, भवति च रिपुजेता कर्मपूज्यो दृढांग।।
अर्थात यदि षष्ठ भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति योगी, मतिमान, अपने पक्ष के लोगों का हित चाहने वाला, अपने बंधु-बांधवों को खुश रखने वाला, दुबले-पतले शरीर वाला, सदा घर बनाकर गृहस्थी चलाने वाला, सुंदर तथा विलासी होता है, पाश्चात्य मत से यदि सूर्य षष्ठ भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति का स्वास्थ्य प्रायः अच्छा नही रहता और यदि सूर्य पीड़ित हो तो लंबे समय तक दवाईयों का खाने के योग बनते हैं और यदि सूर्य स्थिर राशि (वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) का हो तो व्यक्ति को गले से संबंधित समस्या प्रायः बनी ही रहती है।
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार यदि लग्न कुंडली के षष्ठ भाव में सूर्य हो तो बहुत ही शुभ होता है ऐसे व्यक्ति प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करने वाले, शत्रुओं पर विजय पाने वाले, मामा का सुख प्राप्त करने वाले होते हैं तथा इन्हें प्रायः गले, हिर्दय, कुक्षि, पीठ व मूत्रेन्दीय में कोई विकार रहता है, यदि सूर्य चर राशि का षष्ठ भाव में हो तो यकृत के रोग प्रायः बने रहते हैं तथा व्यक्ति की छाती कुछ दुर्बल होती है या शरीर पर कोई जख्म आदि से अत्यंत पीड़ा होती है, यदि लग्न कुंडली के षष्ठ भाव में स्थित सूर्य पर शुब ग्रह की दृष्टि हो या सूर्य शुभ ग्रहों से युत हो तो व्यक्ति को नेत्र का रोग नही रहता और यदि षष्ठ भाव में सूर्य क्रूर ग्रहों से युत या दृष्ट हो तो २० वें वर्ष में प्रायः नेत्र रोग होता है या पिता को कष्ट होता है और यदि षष्ठ भाव में सूर्य स्वग्रही हो या षष्ठ भाव का स्वामी शुभ स्थिति में हो उपरोक्त बताए गए रोगादि अशुभ फलों में कमी आती है साथ ही ऐसा अनेक बार अनुभव में आया है कि यदि षष्ठ भाव में सूर्य हो तो ७ वें वर्ष में पिता को कोई कष्ट रहता है।
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार यदि षष्ठ भाव में सूर्य हो तो विष, शस्त्र, अग्निदाह, भूख, शत्रु आदि से प्रायः व्यक्ति को दुःख का अनुभव होता है और हिंसक जीवों या अन्य किसी कारण से शरीर पर चोटादि का चिन्ह होता है और यदि षष्ठ भाव में सूर्य व मंगल का संबंध बनाता हो तो चक्षु रोग, सूर्य व शनि का संबंध बनने से पिता-पुत्र में मतभेद के अतिरिक्त पत्थर पर गिरने से चोट या बिजली से कष्ट या पेट में वायु रोग से पीड़ा रहती है तथा यदि स्त्री राशि का सूर्य षष्ठ भाव में हो तो व्यक्ति प्रायः सुखी, प्रेमी और पवित्र होता है किंतु स्त्री राशि का षष्ठ भाव में स्थित सूर्य माता के लिए अशुभ होता है और यदि षष्ठ भाव में सूर्य पुरुष राशि का हो तो व्यक्ति सरकार या उच्च अधिकारी द्वारा उच्च पद की प्राप्ति करवाने के अतिरिक्त योगाभ्यासी होता है साथ ही ऐसे व्यक्ति अत्यंत कामी, घमंडी, क्रोधी होते है और मामा पक्ष का कोई अनिष्ट व मौसी विधवा या पुत्रहीन होती है और ऐसा व्यक्ति अपने अधिकारियों से लड़ता रहता है किंतु यदि स्त्री राशि का सूर्य हो तो व्यक्ति मीठा संवाद करने वाला होता है व मामा और मौसी पक्ष के लिए भी शुभ होता है।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
Mobile:- 9919367470, 7007245896
Email:- pooshark@astrologysutras.com
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