लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य का फल–Astrology Sutras

लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य का फल–Astrology Sutras

 

लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य का फल

लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य का फल

 

यदि लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य हो तो ग्रंथकारों का मत है कि ऐसे व्यक्ति शरीर से दुबले, छोटे नेत्रों वाले, क्रोधी किंतु उदार प्रकृति वाले, अल्प संतान वाले, नेत्र रोगी और दीर्घजीवी होते हैं तथा धनार्जन हेतु इनको अथक परिश्रम करना पड़ता है साथ ही ऐसे व्यक्तियों के शत्रु अधिक होते हैं साथ ही यदि अष्टम स्थान का स्वामी बली ग्रह के साथ हो तो ऐसे व्यक्ति इच्छानुसार खेती करने वाले अर्थात कृषक होते हैं, यदि लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति चतुर होता है और प्रायः इनको अनेक कष्ट भोगने पड़ते हैं और अनेक स्त्रियों से संबंध जोड़ने वाले होते है साथ ही अभक्ष्य वस्तुओं का सेवन करने वाले होते हैं तथा इनका धन शीघ्र चोरी हो जाता है एवं कभी-कभी ऐसे व्यक्तियों पर कठिन और गुप्त विपत्ति भी आ पड़ती है क्योंकि अष्टम भाव कुंडली का सबसे अशुभ स्थान होता है जिसे मृत्यु स्थान भी कहते है अतः इस भाव में सूर्य के स्थित होने के अशुभ फल ही मिलते हैं ऐसे व्यक्तियों को दूसरे को ठगने में बहुत आनंद आता है किंतु अष्टम भाव का सूर्य विदेश यात्रा भी करवाता है और ऐसे व्यक्ति अत्यधिक कामी होने के कारण से परदेश में परदेशीय स्त्रियों से अवैध संबंध भी जोड़ते हैं और स्त्रियों को प्रसन्न रखने के लिए या उनके कहने पर अभक्ष्य तथा अग्राह्य पदार्थों का आनंद लेते हैं जिस कारण इन्हें गुह्यरोग भी होने की संभावना रहती है, ऐसे व्यक्तियों की शक्ति क्षीण हो जाती है और ऐसे व्यक्ति आलस्य में डूबे रहते हैं और अपने आपकी व अपने धन की रक्षा कर सकने में असमर्थ रहते हैं जिस कारण से इनका धन भी चोरी होने की संभावना रहती है तथा यदि अष्टम भाव का स्वामी भी पीड़ित हो तो ऐसे व्यक्तियों की अकाल मृत्यु भी हो जाती है।

 

मंत्रेश्वर महाराज जी ने फलदीपिका में कहा है कि यदि लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति को थोड़ा धन व थोड़ी आयु प्राप्त होती है व इनके मित्र भी कम ही होते हैं साथ ही ऐसे व्यक्तियों की नजर भी कमजोर होती है वहीं वैधनाथ जी ने कहा है कि यदि लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति मनोहर होता है और लड़ने-झगड़ने में विशेष चतुर होता है किंतु ऐसे व्यक्ति कभी भी संतुष्ट नही होते हैं, मानसागरी में कहा गया है कि यदि लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य हो तो:-

 

निधनगतदिनेशे चंचल: त्यागशील: किलबुधगणसेवी सर्वदारोगयुक्त:।
वितथ बहुलभाषी भाग्यहीनों विशीलो मतियुतचिरंजीवी नीचसेवीप्रवासी।।

 

अर्थात जिस व्यक्ति के अष्टम भाव में सूर्य हो वह चंचल स्वभाव वाला, दानी, पंडित, विद्वानों की सेवा में रहने वाला, रोगी, मिथ्याभाषण करने वाला, अभागा, आचरणहीन, मतियुक्त तथा लंबी उम्र वाला होता है और ऐसे व्यक्तियों को नीचवृत्ति के लोगों की सेवा करनी पड़ती है साथ ही ऐसे व्यक्ति परदेश में वास करते हैं।

 

ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के मत व अनुभव के अनुसार यदि लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति किसी भी विषय पर जल्दी संतुष्ट नही होता जिस कारण से इनके पास धन होते हुए भी इन्हें धन संबंधी चिंता प्रायः बनी रहती है और इनका धन औषधि, पिता व परिवार पर अधिक व्यय होता है और यदि अष्टम भाव का स्वामी भी पीड़ित हो तो ऐसे व्यक्तियों को मध्यम आयु योग प्राप्त होता है और इन्हें कुछ वैमन्यस्ता के साथ पुत्र सुख प्राप्त होता है और ऐसे व्यक्तियों को प्रायः नेत्र व उदर संबंधित रोग के साथ-साथ मूत्रेन्दीय में भी कोई विकार संभव रहता है तथा इनके ससुराल पक्ष के लोगों की वाणी कुछ कटु होती है किंतु ऐसे व्यक्ति ज्ञानी, विद्वान, पंडित और ब्राह्मणों की सेवा करने वाले होते हैं तथा इन्हें पिता का पूर्ण सुख नही मिल पाता या इनके पिता को कोई कष्ट प्रायः बना ही रहता है, ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार सभी ग्रंथकारों ने अष्टम भाव में स्थित सूर्य के अशुभ फल को देने वाला बताया है क्योंकि अष्टम भाव नाश-स्थान माना जाता है लेकिन ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के मत व अनुभव के अनुसार यदि सूर्य अष्टम भाव में मेष, सिंह व धनु राशि के हों तो बुरे फल अत्यधिक मिलते हैं किंतु मेष व सिंह राशि का सूर्य अष्टम भाव में हो तो आयुष्य की रक्षा होती है साथ ही यदि लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य यदि मिथुन, तुला व कुंभ राशि का सूर्य हो तो बुरे फल कुछ कम मिलते हैं तथा यदि लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य यदि स्त्री राशि का हो तो सामान्य फल मिलते हैं।

 

ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार यदि लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य यदि मिथुन, कर्क, धनु और मीन राशि का हो तो व्यक्ति की असावधानी के कारण उनकी मृत्यु होती है तथा यदि मेष व सिंह राशि का सूर्य अष्टम भाव में हों तो व्यक्ति की झटके से मृत्यु होती है किंतु यदि लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य यदि शेष अन्य राशियों में हो तो व्यक्ति की किसी लंबी बीमारी के चलते मृत्यु होती है, ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार यदि लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य यदि पुरुष राशि का हो तो व्यक्ति के घर की गुप्त बातें नौकरों द्वारा बाहर निकल जाती है अथवा स्त्री के द्वारा भी गुप्त बातें दूसरे जान लेते हैं साथ ही यदि पुरुष राशि का सूर्य अष्टम भाव में हो तो अनुभव में आया है कि प्रायः स्त्री स्वम् पैसे के लिए अथवा पति की पैसे के जरूरत को पूरा करने के लिए या अपना कोई कार्य निकालने के लिए परपुरुषगामिनी भी होती है किंतु इसके लिए अन्य ग्रहों का भी सहयोग आवश्यक होता है, यदि किसी महिला की लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य हो तो उक्त महिला से पहले उसके पति की मृत्यु हो जाती है किंतु यदि किसी महिला की कुंडली के द्वितीय भाव में सूर्य हो तो उसे प्रायः अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होने की संभावना बली हो जाती है, ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार यदि सूर्य अष्टम भाव में हो तो वृद्धावस्था में दरिद्रता योग उत्पन्न करता है अर्थात जैसे-जैसे सूर्य का अस्त होता है वैसे ही व्यक्ति के भाग्य का भी अस्त हो जाता है और ऐसा योग ५० वर्ष की आयु के बाद होना आरंभ होता है साथ ही स्त्री राशि का अष्टमस्थ सूर्य अधिक संतति व पुरुष राशि का अष्टमस्थ सूर्य कम संतति देता है।

 

जय श्री राम।

 

Astrologer:- Pooshark Jetly

Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)

Mobile:- 9919367470, 7007245896

Email:- pooshark@astrologysutras.com

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