अक्षय तृतीया १४ मई २०२१ जानिए शुभ मुहर्त, व्रत विधि व महत्व
अक्षय तृतीया १४ मई २०२१ जानिए शुभ मुहर्त, व्रत विधि व महत्व
अक्षय तृतीया जिसे अखा तीज भी कहा जाता है वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है धर्मसिन्धु में लिखा है “द्वेधाविभक्त दिनपूर्वाधैर्यक देश व्यापिनी दिनद्वयेचेत् त्रिमुहूर्ताधिक व्याप्तिसत्वे परा” यदि द्वेधा विभक्त पूर्वार्ध की तृतीया तिथि दो दिन को स्पर्श करती हो और अग्रिम दिन “त्रिमुहूर्ताधिक व्याप्तिसत्वे परा ग्राह्या” तीन मुहर्त से अधिक समय तक व्याप्त रहे तो ऐसी स्थिति में परा ग्रहण करें अन्यथा “त्रिमुहूर्तन्यूनत्वे पूर्वा” धर्मसिन्धु पृष्ठ संख्या ७१ पर उल्लिखित ऋषि वाक्य में द्विविधाजनक परिस्थिति का संकेत है।
इस वर्ष १४ मई २०२१ में सात पलों के उपरांत (रात-दिन) व्याप्त है और १५ मई २०२१ शनिवार में तीन मुहर्त से अधिक समय तक तृतीया तिथि के रहने के कारण से व निर्णय सिंधु के पृष्ठ संख्या ६१ पर ब्रह्मवैवर्त पुराण के मत “रम्भाख्यां वर्ज यित्वा तु तृतीयां द्विसत्तम। अनयेषु सर्वकार्येषु गणयुक्ता प्रशस्यते।।” अर्थात- रम्भाव्रत को छोड़कर सब कार्यों में चतुर्थी युक्त तृतीया को श्रेष्ठ कहा गया है के अनुसार इस बार अक्षय तृतीया का पर्व १४ मई २०२१ शुक्रवार को मनाया जाएगा इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती है ऐसी मान्यता है कि आज के दिन विष्णु जी व लक्ष्मी जी की पूजा करने से धन-संपदा में अक्षय वृद्धि होती है शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन किए गए जप, तप, दान का पुण्यफल कभी क्षय नही होता अतः इस दिन सभी लोगों को यथा सामर्थ्य जप, तप व दान करना चाहिए पौराणिक कथाओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही सतयुग व त्रेता युग का आरंभ हुआ था, शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन किसी भी नए कार्य का आरंभ करने के लिए पंचांग की भी कोई आवश्यकता नही होती यह तिथि अपने आप में ही अभुझ मुहर्त होती है।
अक्षय तृतीया का महत्व:-
अक्षय तृतीया के दिन ही भगवान परशुराम का अवतार हुआ था साथ ही इसी दिन माँ गंगा का भी धरती में अवतरण हुआ था पौराणिक कथाओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास जी ने महाभारत ग्रंथ की रचना आरंभ की थी, धर्मराज को अक्षय तृतीया का महत्व समझाते हुए स्वयं माता पार्वती ने बताया कि मैं स्वयं यह व्रत करके भगवान शिव के साथ आनंदित रहती हूँ अतः जो कन्याएं इस दिन यह व्रत पूरी श्रद्धा भाव के साथ करती हैं उन्हें इच्छित वर/पति की प्राप्ति होती है साथ ही जिन्हें संतान सुख न प्राप्त हुआ हो वह भी यदि इस व्रत को पूर्ण निष्ठा व समर्पण के साथ करते हैं तो उन्हें संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है।
अक्षय तृतीया शुभ मुहर्त:-
इस बार अक्षय तृतीया पर तृतीयां तिथि १५ मई प्रातः ५:०८ तक तदोपरांत चतुर्थी तिथि व मृगशिरा नक्षत्र के अंतर्गत चंद्रमा वृषभ राशि में सायं ५:१२:५९ तक तदोपरांत मिथुन राशि से गोचर करेंगे अतः अक्षय तृतीया पूजन शुभ मुहर्त १४ मई २०२१ को प्रातः ५:२४ से १२:४४ तक रहेगा, अभिजीत मुहर्त ११:५० से १२:४४ तक रहेगा इसके अतिरिक्त सूर्य का वृषभ राशि में प्रवेश १४ मई २०२१ की मध्य रात्रि ३:०३ से ६ घंटे २४ मिनट पूर्व अर्थात रात्रि ८:३९ तक पुण्यकाल रहेगा।
अक्षय तृतीया व्रत विधि:-
यह व्रत लोग अपने घर की सुख-समृद्धि के लिए रखते हैं इस दिन सर्वप्रथम प्रातः ब्रह्म मुहर्त में उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नानादि कर के विष्णु जी व लक्ष्मी जी की मूर्ति के समक्ष बैठ कर एक दीपक प्रज्वलित करना चाहिए तदोपरांत हाथ मेंपुष्प, अक्षत व जल हाथ में लेकर व्रत का संकल्प करना चाहिए उसके बाद शांत चित्त से उनकी श्वेत कमल के पुष्प या श्वेत गुलाब, धूप एवं चंदन इत्यादि से पूजा अर्चना करनी चाहिए और नैवेद्य के रूप में जौ, गेंहू, या सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि अर्पित करना चाहिए साथ ही इस दिन ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उन्हें यथा शक्ति दान करना चाहिए शास्त्रों के अनुसार दान में फल, बर्तन, वस्त्र, गौ, भूमि, जल से भरे घड़े, कुल्हड़, पंखे, खड़ाऊं, चावल, नमक, घी, खरबूज, शकर, साग, आदि दान करना पुण्यकारी माना जाता है।
अक्षय तृतीया के दिन क्या खरीदना होता है शुभ:-
शास्त्रों के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सोना, चांदी, मिट्टी के पात्र, रेशमी वस्त्र, साड़ी, चावल, हल्दी, फूल का पौधा और शंख खरीदना बेहद शुभ होता है।
अक्षय तृतीया के दिन मिला था द्रौपदी को अक्षय पात्र:-
महाभारत के अनुसार पांडवों के १३ वर्ष वनवास के समय अक्षय तृतीया के दिन ही एक बार दुर्वासा ऋषि पांडवों की कुटिया में आए थे तथा पांडवों और द्रौपदी ने घर में जो कुछ भी था उनसे उनका यथा शक्ति अतिथि सत्कार किया जिससे दुर्वासा ऋषि अत्यंत प्रसन्न हुए व उन्होंने प्रसन्न होकर द्रोपदी को अक्षय पात्र उपहार में दिया था।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
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