विपरीत राजयोग: धनवान व राजा के समान सुख देने वाला राजयोग
ज्योतिष में बहुत से योग पर चर्चा करी गयी है उनमें से एक विपरीत राजयोग भी है जिसके बारे में अधिकतर लोग जानते हैं जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि विपरीत राजयोग अर्थात विपरीत भी है और राजयोग भी है इस योग में जन्मा व्यक्ति अनेक विपरीत परिस्थितियों से होते हुए बड़ी सफलता प्राप्त करते हैं व राजा के समान सभी सुखों का अनुभव करते हैं तो चलिए जानते हैं विपरीत राजयोग कब बनता है और उसके कुछ महत्वपूर्ण नियम क्या है?
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विपरीत राज योग कुंडली के विपरीत भावों से बनते हैं कुंडली के ३, ६, ८ व १२ भावों को विपरीत भाव कहा गया है जब इन भावों के स्वामी एक-दूसरे के भाव में बैठें तो विपरीत राजयोग बनता है लेकिन इस राजयोग के कुछ नियम हैं जिनमे ही यह योग अपना पूर्ण फल दिखाता है विपरीत राज योग तीन प्रकार हर्ष, सरल और विमल होते हैं तो चलिए जानते हैं उन नियमों के बारे में:-
१. षष्ठ भाव का मालिक जब अष्टम या द्वादश भाव में बैठे हो और पाप/अशुभ ग्रह के साथ युति किए हों या षष्ठ भाव के मालिक को देखते हों साथ ही लग्नेश लग्न को देखते हों तो हर्ष विपरीत राजयोग होता है।
२. अष्टम भाव का स्वामी जब षष्ठ और द्वादश भाव में बैठा हो और पाप/अशुभ ग्रह के साथ युति किए हों या षष्ठ भाव के मालिक को देखते हों साथ ही लग्नेश लग्न को देखते हों तो सरल विपरीत राजयोग होता है।
३. द्वादश भाव का स्वामी जब षष्ठ या अष्टम भाव में बैठें हों और पाप/अशुभ ग्रह के साथ युति किए हों या षष्ठ भाव के मालिक को देखते हों साथ ही लग्नेश लग्न को देखते हों तो यह विमल विपरीत राजयोग बनाता है।
विपरीत राजयोग कुछ महत्वपूर्ण नियम:-
१. यदि ३, ६, ८, १२ स्थान के मालिक अशुभ स्थान में शुभ ग्रह के साथ बैठे या शुभ ग्रह की दृष्टि उन पर हो तो विपरीत राजयोग नही बनता।
२. यदि विपरीत राजयोग बन रहा हो लेकिन लग्नेश कमजोर हो और लग्नेश की लग्न पर दृष्टि न हो तो विपरीत राजयोग के शुभ फल नही होते है।
३. ३, ६ या ८ भाव में कोई ग्रह नीच राशि में बैठे हों और लग्नेश लग्न को देखते हैं तो विपरीत राजयोग बनता है।
४. ६, ८ या १२ भावों के स्वामी नीच राशि में बैठे हों या शत्रु राशि में बैठे हों या अस्त हों और लग्न को देखते हों तो विपरीत राजयोग बनता है।
५. ६, ८ व १२ भाव के मालिक यदि अपनी नीच राशि में बैठकर लग्न को देखते हों साथ ही लग्नेश लग्न को देखते हों तो विपरीत राजयोग बनता है।
विपरीत राजयोग में जन्मा व्यक्ति अनेक प्रकार के संघर्षों व विपरीत परिस्थितियों को पार करते हैं धनवान व राजा के समान सुख प्राप्त करता है साथ ही समाज में अच्छी मान-प्रतिष्ठा प्राप्त करता है, चलिए इस योग को कुछ उदाहरण कुंडली से समझते हैं।
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद जी की कुंडली में अष्टम भाव के मालिक ग्रह षष्ठ स्थान में शनि के साथ बैठकर सरल विपरीत राजयोग बना रहा है और सूर्य की दृष्टि भी चंद्रमा पर है एवं लग्नेश गुरु की दृष्टि लग्न पर है जो कि पूर्ण विपरीत राजयोग बना रहे है सरल विपरीत राजयोग होने के कारण से डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद बहुत सरल हिर्दय के व्यक्ति रहे और 2 बार राष्ट्रपति बने।
Queen Victoria जी की कुंडली में अष्टमेश गुरु भाग्य स्थान पर नीच राशि में बैठकर लग्न को देख रहे हैं (महत्वपूर्ण नियम संख्या ४ देखें) और विपरीत राजयोग बना रहे हैं जिसके फलस्वरूप विक्टोरिया जी १३ वर्ष की उम्र में महारानी बनी और ५६ वर्षों तक शासन किया।
चलिए एक और कुंडली से विपरीत राजयोग को समझने का प्रयास करते हैं:-
इस कुंडली में अष्टमेश शनि लग्न में शत्रु राशि में बैठे हैं और षष्ठ स्थान के मालिक गुरु लाभ स्थान पर शत्रु राशि में हैं साथ ही चंद्रमा लग्नेश बनकर लग्न को देख रहे हैं जो कि विपरीत राजयोग को दर्शाता है यह इंदिरा गांधी जी की कुंडली है परिचय की आवश्यकता नही, समझाने का मतलब यह है कि यदि लग्नेश बली हो तभी विपरीत राजयोग का पूर्ण फल मिलता है।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
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