लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य का फल–Astrology Sutras

लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य का फल–Astrology Sutras

 

लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य का फल

लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य का फल

 

यदि लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो ग्रंथकारों का मत है कि व्यक्ति दुबला, मझोले कद वाला, भूरे रंग के केश और नेत्र से युक्त, चंचल, भय युत, स्त्री सहवास तथा सुख भोगने में आसक्त, स्त्रियों से विरोध करने वाला तथा स्त्रियों से अनादर पाने वाला, परस्त्री प्रेमी एवं परगृही भोजी होता है तथा ऐसे व्यक्तियों की प्रायः दो स्त्रियाँ होती है और विवाह विलंब से होता है साथ ही ऐसे व्यक्ति धनहीन, राज कोप से दुःखी तथा कदन्न भोजी होते हैं तथा यदि ऐसे व्यक्तियों का शीघ्र विवाह हो तो १४ वें या ३४ वे वर्ष में स्त्री का नाश और २५ वें वर्ष में परदेश यात्रा होती है, यदि सप्तम भाव में सिंह राशि का सूर्य हो तो एक स्त्री होती है किंतु यदि सूर्य पर शत्रु ग्रह की दृष्टि हो अथवा सूर्य शत्रु ग्रह के साथ अथवा पाप ग्रह से युक्त हो तो बहुत सी स्त्रियाँ होती है।

 

मंत्रेश्वर महाराज जी ने फलदीपिका में कहा है कि यदि सप्तम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति राजा से विरोध रखता है अर्थात ऐसे व्यक्तियों के आचरण से राजा इनके विरुद्ध हो जाते हैं और ऐसा व्यक्ति राजा द्वारा दंड को प्राप्त करने वाला होता है जिससे ऐसे व्यक्तियों की प्रतिष्ठा धूल में मिल जाती है साथ ही ऐसे व्यक्ति पैदल चलते हैं और ऐसे व्यक्ति स्त्रीहीन या स्त्रियों से विरोध सहने वाला तथा स्त्री के अभाव में पुरुष धर्म-अर्थ और काम से वंचित रहता है, मानसागरी में कहा गया है कि यदि सप्तम भाव में सूर्य हो तो:-

 

युवतिभवन संस्थे भास्करे स्त्रीविलसी, न भवति सुखभागी चंचल: पापशील:।
उदरसमशरीरो नातिदीर्घो न ह्रस्व:, कपिलनयनरूप: पिंगकेश: कुमुर्ति:।।

 

अर्थात यदि सप्तम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति को स्त्री का भोग-उपभोग मिलता है किंतु वह सुखी नही होता है तथा ऐसे व्यक्ति अस्थिर स्वभाव के और पापकर्म कर्ता होते हैं साथ ही इनके उदर और देह एक बराबर होते हैं साथ ही ऐसे व्यक्ति न तो बहुत लंबा होता है और न ही बहुत छोटा होता है, ऐसे व्यक्तियों का रूप-रंग और आँखें कपिल होती हैं तथा केश कुछ पीले होते है मानसागरी के अनुसार सप्तम का सूर्य पति-पत्नी का सौमनस्य कायम रखता है अन्यथा व्यक्ति को स्त्री का उपभोग अच्छा मिलता है तो वहीं वराहमिहिर जी ने कहा है कि यदि लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो “स्त्रीभी: गत: परिभवं मगदे पतंगे” अर्थात स्त्रियों से तिरस्कार अर्थात अनादर पाने वाला और स्त्रियों का घृणापात्र होता है।

 

ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के मत व अनुभव के अनुसार यदि सप्तम भाव में सूर्य मेष, सिंह व मकर राशि का हो तो ही उपरोक्त ग्रंथकारों द्वारा बताए गए अशुभ फल प्राप्त होते हैं, यदि सप्तम भाव में सूर्य मिथुन, तुला या कुंभ राशि का हो तो व्यक्ति शिक्षा विभाग में अच्छी प्रगति करता है साथ ही कानून का विशेषज्ञ होता है और संगीत, नाट्य व रेडियो आदि साधनों में प्रगति करता है ऐसे व्यक्तियों को एक या दो ही संतान होती है, यदि मेष, सिंह या धनु राशि का सूर्य सप्तम भाव में हो तो प्रायः व्यक्ति के दो विवाह होते हैं या एक ही विवाह बहुत विलंब से होता है तथा ऐसे व्यक्ति स्वतंत्रता प्रिय होते हैं अर्थात ऐसे व्यक्ति नौकरी करना पसंद नही करते हैं, यदि सप्तम भाव में सूर्य वृषभ, कन्या या मकर राशि का हो तो ऐसे व्यक्तियों को व्यापार में अच्छा लाभ होता है और ऐसे व्यक्ति जनपद या विधानसभा चुनाव में भी विजयी होते हैं, यदि लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य कर्क, वृश्चिक या मीन राशि का हो तो व्यक्ति वैध/डॉक्टर होता है या विज्ञान विषयक पदवी को प्राप्त करता है या किसी नहर का अधिकारी होता है, यदि लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर या मीन राशि का हो तो व्यक्ति ५० वें वर्ष तक अच्छी उन्नति प्राप्त करता है किंतु इसके उपरांत संघर्ष करता है, पुरुष राशि का सूर्य यदि लग्न कुंडली के सप्तम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति के जीवन में प्रायः उतार-चढ़ाव बने रहते हैं और ५०-५२ वर्ष की आयु के पास उनके जीवनसाथी की मृत्यु हो जाती है या मृत्यु तुल्य कष्ट प्राप्त होता है और ऐसे व्यक्तियों को अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है साथ ही इन्हें संतान कम ही होती है किंतु स्त्री राशि का सूर्य लग्न कुंडली के सप्तम भाव में हो तो संतान अधिक होती है।

 

ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार यदि लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति की पत्नी प्रभावशालिनी, व्यवहार और बर्ताव में अच्छी, विपत्ति के समय पति का साथ देने वाली, अतिथि सत्कार करने वाली, दयालु, नौकरों से अच्छा काम निकाल लेने वाली और धन प्रिया और रूपवती होती है, ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार यदि लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य मेष, सिंह, धनु और मीन राशि का हो तो व्यक्ति को प्रायः अपमानजनक स्थितियों का सामना करना पड़ता है और प्रेम विवाह होने के बाद भी पति-पत्नी में संबंध विच्छेद हो जाता है या पत्नी अपने पति को उनके श्वसुर के घर पर रहने को या पति के श्वसुर द्वारा दिए गए घर पर रहने को मजबूर करती है।

 

विशेष:-

 

ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार आज से कई वर्ष पूर्व यवनराज्य सत्ता में अविवाहित लड़कियों का अपहरण हो जाने के कारण से कन्याओं का विवाह “अष्टवर्षा भवेद् गौरी दशवर्षा च रोहिणी” के अनुसार १०-१२ वर्ष में हो जाता था शायद इसी कारण से विभिन्न ग्रंथकारों ने सप्तमस्थ सूर्य के अशुभ फल को बताया है यहाँ एक विचारीय विषय यह है कि क्या केवल सप्तम भाव में सूर्य को देखकर यह फलकथन कहना उचित होता है? ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार भृगुसूत्र में बताया गया है कि यदि लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य हो तो विवाह देरी से होता है क्या यह पूर्णतया तर्क संगत लगता है?? यह एक विचारणीय विषय है, ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुभव के अनुसार यदि सिंह राशि का सूर्य सप्तम भाव में हो या सप्तम भाव को शुभ बली ग्रह देखते हों तो एक ही विवाह होता है।

 

जय श्री राम।

 

Astrologer:- Pooshark Jetly

Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)

Mobile:- 9919367470, 7007245896

Email:- pooshark@astrologysutras.com

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