आयु निर्धारण सूत्र—-Astrology Sutras
आयु निर्धारण सूत्र—-Astrology Sutras
योनि से जातक के बारह वर्ष के भीतर आयु का निश्चय नही हो सकता, क्योंकि माता-पिता के किये हुए कर्मों से बाल ग्रहों से बालक का नाश होता है।
जन्म से 12 वर्ष तक चार 2 वर्ष तीन जगह विभाग किया है, चार वर्ष तक का बालक माता के पाप से मरता है, उसके बाद आठ वर्ष तक पिता के पाप से मरता है और अंत के जो वर्ष हैं (आठवें के बाद 12 वर्ष तक) उसमें अपने पापों से मरता है।
जन्म से 8 वर्ष तक बालारिष्ट रहता है, उसके बाद 20वें वर्ष तक योगारिष्ट (दुष्ट ग्रहों से उत्पन्न) रहता है, 32वें वर्ष तक अल्पायु, 32 से 70 तक मध्यम आयु और 70 के बाद 100 तक पूर्ण आयु कही गयी है एवं 100 से 120 वर्ष तक परम आयु समझनी चाहिए।
१. जन्म कुंडली में यदि चंद्रमा छठे, आठवें या बाहरवें भाव में रहकर सूर्य के अतिरिक्त पाप ग्रह (मंगल, शनि, राहु, केतु) से देखा जाता हो तो बृहस्पति के लग्न में रहने पर भी बालक मरता ही है, मतलब यह प्रवल अरिष्ट योग होता है।
२. लग्न से पांचवां व नौवां भाव पाप ग्रह की राशि हो उसमें सूर्यादि ग्रह हों तो क्रम से पिता, माता, भाई, मामा, नानी, नाना और बालक जल्द नष्ट होते हैं।
३. लग्न और चंद्रमा क्रूर ग्रह से दृष्ट हों तथा शुभ ग्रह से संबंध न रखते हों और यदि बृहस्पति लग्न में न हो तो बालक की माता की मृत्यु निश्चित होती है।
४. यदि सूर्य, चंद्रमा चतुर्थ स्थान में स्थित हों और शनि सप्तम में हो तो बालक के माता की मृत्यु होती है और यदि लग्न से छठे भाव में क्रूर ग्रह हो तो भाई का नाश होता है।
५. शनि के साथ चंद्रमा और सूर्य बाहरवें भाव में हो, मंगल चौथे भाव में हो तो बालक की माता गर्भ के साथ मरती है।
६. लग्न और चंद्रमा एक साथ या अलग-अलग शुभ ग्रह की दृष्टि से रहित हों या पाप ग्रह के मध्य में हो तो बालक की माता गर्भ के साथ मरती है।
७. छठे, बाहरवें और आठवें भाव में क्रूर ग्रह हों और इन स्थानों में शुभ ग्रह न हों तथा पाप ग्रह के मध्य में शुक्र व गुरु हों तो प्रसव होते ही स्त्री बालक सहित मरती है।
८. चंद्रमा से चौथे या दसवें भाव में पाप ग्रह हों तथा उनको शुभ ग्रह न देखते हों तो बालक की माता की मृत्यु होती है अथवा सूर्य से दसवां भाव पाप ग्रह से देखा जाता हो किन्तु शुभ ग्रह से न देखा जाता हो तो बालक की माता की मृत्यु होती है।
९. बली सूर्य शनि से दृष्ट या युत होकर तीसरे भाव में हो अथवा क्षीण चंद्रमा पाप ग्रह के साथ शुक्र से तीसरे भाव में हो तो प्रसव होते ही स्त्री बालक सहित मार जाती है।
१०. लग्न से आठवें भाव में सूर्य या मंगल पाप ग्रह हों और शुभ ग्रह से न देखे जाते हों साथ ही चंद्रमा कृष्ण पक्ष का हो तो उस बालक के माता की मृत्यु हो जाती है।
११. यदि दिन में जन्म हो शुक्र से सूर्य पांचवे या नौवें में हो और यदि रात्रि का जन्म हो तो चंद्रमा से शनि पांचवें या नौवें भाव में हो और उसे पाप ग्रह देखते हों और शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा चंद्रमा बल रहित हो तो बालक की माता की मृत्यु होती है।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
Mobile:- 9919367470, 7007245896
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