सिंह लग्न कुंडली के सप्तम, अष्टम व नवम भाव में सूर्य का फल
सिंह लग्न कुंडली के सप्तम, अष्टम व नवम भाव में सूर्य का फल
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी द्वारा लिखित यह ग्रह फल उनके स्वम् के अनुभव पर आधारित है यहाँ सिर्फ एक ही ग्रह के विभिन्न भावों में फल को बताया गया है अतः अन्य किसी ग्रह के युति व दृष्टि संबंध बनाने या नीचभंग राजयोग बननेसेबताए गए फलों में कुछ बदलाव संभव रहेगा।
सिंह लग्न कुंडली के सप्तम भाव में सूर्य का फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार सूर्य के सप्तम भाव स्त्री व रोजगार स्थान पर अपने शत्रु शनि की कुंभ राशि में स्थित होने के कारण से जातक/जातिका को स्त्री पक्ष में कुछ वैमन्यस्ता युक्त सुख प्राप्त होगा और रोजगार के पक्ष में कठिन परिश्रम से सफलता प्राप्त होगी तथा स्त्री और गृहस्थ के कुछ नीरसता का अनुभव होगा किंतु फिर भी गृहस्थिक मार्ग के भोगादिक पक्ष में आत्मीयता बनी रहेगी और सूर्य के सातवीं दृष्टि से प्रथम भाव अर्थात लग्न (देह स्थान) को अपने स्वम् के स्वामित्व वाली सिंह राशि में देखने के कारण से देह में शक्ति रहेगी तथा मन में स्वाभिमान रहेगा तथा जातक/जातिका गृहस्थ धर्म के संचालन मार्ग में कुछ ऊँचा नाम करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेंगे व सफलता प्राप्त करेंगे।
सिंह लग्न कुंडली के अष्टम भाव में सूर्य का फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार सूर्य के अष्टम भाव आयु-मृत्यु व पुरातत्व स्थान पर अपने मित्र गुरु के स्वामित्व वाली मीन राशि में स्थित होने के कारण से जातक/जातिका को देह स्थान में कुछ परेशानी अनुभव होगी तथा बाहरी स्थानों से अच्छी उन्नति होगी और जातक/जातिका जीवन निर्वाह की शक्ति को तथा कुछ पुरातत्व संबंध को स्वम् अपनी दैहिक शक्ति के योग से प्राप्त करेंगे और अपने जीवन की दिनचर्या में प्रभाव प्राप्त करेंगे साथ ही सूर्य के सातवीं दृष्टि से द्वितीय भाव धन व कुटुंब स्थान को अपने मित्र बुध के स्वामित्व वाली कन्या राशि में देखने के कारण से जातक/जातिका धन की वृद्धि करने के लिए बड़ा भारी प्रयत्न करेंगे और धन-जन के मार्ग में कुछ सफलता प्राप्त करेंगे किंतु जातक/जातिका की वाणी में तेजी अनुभव होगी व जातक/जातिका क्रोधी स्वभाव के रहेंगे।
सिंह लग्न कुंडली के नवम भाव में सूर्य का फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार सूर्य के नवम भाव भाग्य व धर्म स्थान पर अपनी उच्च राशि व मित्र मंगल के स्वामित्व वाली मेष राशि में स्थित होने के कारण से जातक/जातिका को भाग्य की बड़ी शक्ति प्राप्त होगी जिस कारण से भाग्य का पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा और देह में बड़ी भारी प्रभाव शक्ति प्राप्त होगी तथा जातक/जातिका धर्म और ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखेंगे और भाग्यवान समझे जाएंगे किंतु देह में स्थूलता प्राप्त करेंगे साथ ही सूर्य के सातवीं दृष्टि से तृतीय भाव भाई-बहन व पराक्रम स्थान को अपनी नीच राशि व शत्रु शुक्र के स्वामित्व वाली तुला राशि में देखने के कारण से भाई-बहन के सुख-संबंधों में असंतोष रहेगा और जातक/जातिका पराक्रम स्थान में लापरवाही करेंगे और पुरुषार्थ की अपेक्षा भाग्य को बड़ा मानेंगे और कभी-कभी किसी छोटे कार्य को करेंगे।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
Mobile:- 9919367470, 7007245896
Email:- pooshark@astrologysutras.com
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