वर्ष कुंडली के विभिन्न भावों में मुंथा व ग्रहों के फल
वर्ष कुंडली के विभिन्न भावों में मुंथा व ग्रहों के फल
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार ज्योतिष में लग्न कुंडली, चंद्र कुंडली व नवमांश के बाद वर्ष कुंडली की अत्यधिक भूमिका होती है जिससे व्यक्ति का भावी वर्ष कैसा जाएगा यह ज्ञात किया जाता है इसमें मुंथा की विशेष भूमिका होती है तो चलिए जानते हैं वर्ष कुंडली के विभिन्न भावों में मुंथा व ग्रहों के फल:-
मुंथा फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार मुंथा यदि प्रथम भाव में हो तो सुख व शत्रुनाश, द्वितीय भाव में हो तो सुयश और अर्थागम, तृतीय भाव में हो तो कार्यपुष्टि व धन, चतुर्थ भाव में हो तो अंग पीड़ा व दुःख, पंचम भाव में हो तो सुबुद्धि और सुखाप्ति, षष्ठ भाव में हो तो रोग भय और अर्थ नाश, सप्तम भाव में हो तो रोग भय और व्यसन, अष्टम भाव में हो तो दुर्व्यसन और रोग भय, नवम भाव में हो तो भाग्योदय, दशम भाव में हो तो राज्य सुख व धन प्राप्ति, एकादश भाव में हो तो धर्मार्थ और लाभ एवं द्वादश भाव में हो तो सुव्यय और लाभ आदि फल मिलते हैं।
सूर्य फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार सूर्य यदि प्रथम भाव में हो तो क्लेश व चिंता, द्वितीय भाव में हो तो शोक और राजभय, तृतीय भाव में हो तो पराक्रम व धन लाभ, चतुर्थ भाव में हो तो हानि और पीड़ा भय, पंचम भाव में हो तो रोगभय व पुत्र नाश, षष्ठ भाव में हो तो सुख और शत्रु नाश, सप्तम भाव में हो तो स्त्री कष्ट और पीड़ा भय, अष्टम भाव में हो तो शोक व कष्टादि भय, नवम भाव में हो तो धर्म वृद्धि व राज्यप्रद, दशम भाव में हो तो सुख एवं उच्च पद की प्राप्ति, एकादश भाव में हो तो सुखार्थ और लाभ एवं द्वादश भाव में हो तो उद्वेग और पीड़ा आदि फल मिलते हैं।
चंद्रमा फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार चंद्रमा यदि प्रथम भाव में हो तो कफ व ज्वरादि पीड़ा, द्वितीय भाव में हो तो नेत्र पीड़ा व धन प्राप्ति, तृतीय भाव में हो तो धन प्राप्ति व हर्ष, चतुर्थ भाव में हो तो सुख और शत्रुनाश, पंचम भाव में हो तो सुख और सुमति, षष्ठ भाव में हो तो अंङ्ग पीड़ा और व्यय, सप्तम भाव में हो तो ज्वरादि भय, अष्टम भाव में हो तो विविध कष्ट भय, नवम भाव में हो तो पुण्योदय और धनागमन, दशम भाव में हो तो सुकर्म और ज्याप्ति, एकादश भाव में हो तो लाभ एवं द्वादश भाव में हो तो व्यय व नेत्र पीड़ा आदि फल मिलते हैं।
मंगल फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार मंगल यदि प्रथम भाव में हो तो वातव्याधि और व्रण, द्वितीय भाव में हो तो नेत्र रोग और वित्त नाश, तृतीय भाव में हो तो आरोग्यता और द्रव्य लाभ, चतुर्थ भाव में हो तो व्यसन और रोग भय, पंचम भाव में हो तो पुत्र प्राप्ति व दुर्बुद्धि, षष्ठ भाव में हो तो सुख व शत्रु नाश, सप्तम भाव में हो तो स्त्री नाश व कष्ट, अष्टम भाव में हो तो ज्वर पीड़ा व व्रण पीड़ा, नवम भाव में हो तो पुण्योदय व धन प्राप्ति, दशम भाव में हो तो राज्यार्थ और लाभ, एकादश भाव में हो तो धन लाभ एवं द्वादश भाव में हो तो विरोध व कर्ण पीड़ा आदि फल मिलते हैं।
बुध फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार बुध यदि प्रथम भाव में हो तो सुख, यश व धन लाभ, द्वितीय भाव में हो तो द्रव्य प्राप्ति व सुख, तृतीय भाव में हो तो सुख व सुमान, चतुर्थ भाव में हो तो सुख व द्रव्य लाभ, पंचम भाव में हो तो पुत्र व सुख की प्राप्ति, षष्ठ भाव में हो तो रोगभय और कलह, सप्तम भाव में हो तो धनागम और कफ रोग, अष्टम भाव में हो तो व्यांग्रता और कफ रोग, नवम भाव में हो तो धन व कीर्ति की प्राप्ति, दशम भाव में हो तो मान, सुख व धन लाभ, एकादश भाव में हो तो सुख व जय की प्राप्ति एवं द्वादश भाव में हो तो शत्रु व रोगादि भय आदि फल प्राप्त होते हैं।
गुरु फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार गुरु यदि प्रथम भाव में हो तो सुख व यश लाभ, द्वितीय भाव में हो तो कीर्ति व धन की प्राप्ति, तृतीय भाव में हो तो जय व सुख की प्राप्ति, चतुर्थ भाव में हो तो वाहन प्राप्ति व सुख, पंचम भाव में हो तो पुत्र प्राप्ति व सुख, षष्ठ भाव में हो तो शत्रु व रोगादि भय, सप्तम भाव में हो तो सुख व वित्त की प्राप्ति, अष्टम भाव में हो तो कठिन समय व रोगादि भय, नवम भाव में हो तो सुख व भाग्य वृद्धि, दशम भाव में हो तो राज्यार्थ लाभ, एकादश भाव में हो तो सुतार्थ और लाभ एवं द्वादश भाव में हो तो शोक व रोगादि भय आदि फल प्राप्त होते हैं।
शुक्र फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार शुक्र यदि प्रथम भाव में हो तो सम्मान व धन लाभ, द्वितीय भाव में हो तो धन प्राप्ति व उच्च पद की प्राप्ति, तृतीय भाव में हो तो कीर्ति वृद्धि व अर्थागम, चतुर्थ भाव में हो तो सुख व अर्थ लाभ, पंचम भाव में हो तो धनागम व सुख, षष्ठ भाव में हो तो रिपुभति एवं कष्ट, सप्तम भाव में हो तो कलत्र और सौख्य, अष्टम भाव में हो तो ज्वर व पीड़ा, नवम भाव में हो तो धर्म व धनागम, दशम भाव में हो तो मान व जया लाभ, एकादश भाव में हो तो क्षेमार्थ व लाभ एवं द्वादश भाव में हो तो व्यय व अर्थ लाभ आदि फल प्राप्त होते हैं।
शनि फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार शनि यदि प्रथम भाव में हो तो शत्रु भय व वातव्याधि, द्वितीय भाव में हो तो पीड़ा भय और विरोध, तृतीय भाव में हो तो धन प्राप्ति और जय, चतुर्थ भाव में हो तो सुख व अर्थ नाश और कष्ट, पंचम भाव में हो तो सुत हानि व पीड़ा, षष्ठ भाव में हो तो धन प्राप्ति एवं कष्ट नाश, सप्तम भाव में हो तो स्त्री कष्ट और कलह, अष्टम भाव में हो तो दुःख और रोगादि भय, नवम भाव में हो तो भाग्य वृद्धि और शत्रु नाश, दशम भाव में हो तो धन हानि और पीड़ा भय, एकादश भाव में हो तो धन व पुत्र प्राप्ति एवं द्वादश भाव में हो तो क्लेश और चिंता आदि फल प्राप्त होते हैं।
राहु फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार राहु यदि प्रथम भाव में हो तो शिरोवेदना और कलह, द्वितीय भाव में हो तो नृपभय और पीड़ा, तृतीय भाव में हो तो शत्रु नाश, चतुर्थ भाव में हो तो वातव्याधि और दुःख, पंचम भाव में हो तो बुद्धि नाश और निर्धन, षष्ठ भाव में हो तो रिपुक्षय एवं आरोग्य, सप्तम भाव में हो तो धन क्षय व पीड़ा, अष्टम भाव में हो तो धन क्षय और रोग भय, नवम भाव में हो तो धन एवं धर्म वृद्धि, दशम भाव में हो तो वाहन नाश और जय, एकादश भाव में हो तो विपुत्र और सुलाभ एवं द्वादश भाव में हो तो व्याधि और भय आदि फल प्राप्त होते हैं।
केतु फल:-
ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार केतु यदि प्रथम भाव में हो तो पीड़ा, भय और चिंता, द्वितीय भाव में हो तो क्लेश और धन क्षय, तृतीय भाव में हो तो आरोग्य और धर्म नाश, चतुर्थ भाव में हो तो कष्ट और राज्य भय, पंचम भाव में हो तो पीड़ा भय और दुर्बुद्धि, षष्ठ भाव में हो तो सुख और धनागम, सप्तम भाव में हो तो क्लेश और रोग, अष्टम भाव में हो तो ज्वर व पीड़ा, नवम भाव में हो तो भाग्य और यशोर्थ लाभ, दशम भाव में हो तो कीर्ति और अर्थ लाभ, एकादश भाव में हो तो पुत्रार्थ और सुख लाभ एवं द्वादश भाव में हो तो शोक और कष्ट भय आदि फल प्राप्त होते हैं।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
Mobile:- 9919367470, 7007245896
Email:- pooshark@astrologysutras.com
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