लग्न कुंडली के पंचम भाव में सूर्य का फल–Astrology Sutras

लग्न कुंडली के पंचम भाव में सूर्य का फल–Astrology Sutras

 

लग्न कुंडली के पंचम भाव में सूर्य का फल

लग्न कुंडली के पंचम भाव में सूर्य का फल

 

यदि लग्न कुंडली के पंचम भाव में सूर्य हो तो शास्त्रकारों का मत है कि व्यक्ति सत्क्रिया शील, बुद्धिमान, अल्प संतान वाला, शरीर का मोटा, शिव-शक्ति की पूजा करने व उनमें रुचि रखने वाला, श्रेष्ठ कामों से विमुख, तथा सुत एवं धन से रहित होता है तथा ऐसे व्यक्तियों को वातस्थल में पीड़ा और पिता से भय होता है साथ ही यदि सूर्य स्थिर राशि (वृषभ, सिंह और वृश्चिक, कुंभ) का होकर पंचम भाव में हो तो व्यक्ति के प्रथम संतान की मृत्यु हो जाती है तथा यदि चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) का हो तो संतान का नाश नही होता है और यदि द्विस्वभाव राशि (मिथुन, कन्या, धनु, मीन) का हो तो संतान का नाश होता है साथ ही यदि सूर्य स्वग्रही हो तो भी संतान का नाश होता है किंतु ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुभव व मत के अनुसार ऐसा तभी हो सकता है जब पंचम भाव और पंचमाधिपति दोनो पापकर्तरी में हो व क्रूर ग्रह या अशुभ भावों के स्वामी से दृष्ट हो लेकिन इस अवस्था में भी सिर्फ एक ही संतान (ज्येष्ठ संतान) का नाश होता है किंतु यदि पंचम भाव का स्वामी शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो या पंचमाधिपति यदि भाग्य स्थान में उच्च राशि का हो या पंचम भाव को शुभ ग्रह अपनी उच्च राशि में देखते हैं तो गर्भपात या संतान का नाश नही होता है।

 

मंत्रेश्वर महाराज जी ने फलदीपिका में कहा है कि यदि पंचम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति सुखहीन, धनहीन, आयुहीन तथा पुत्रहीन होता है किंतु ऐसे व्यक्तियों की बुद्धि अच्छी होती है और व्यक्ति जंगल व पहाड़ों में घूमने का शौकीन होता है वहीं मानसागरी में कहा गया है कि यदि सूर्य पंचम भाव में हो तो:-

 

तनयगतदिनेशे शैशवे दुःखभागी न भवति धनभागी यौवने व्याधियुक्त:।
जनयति सुतमेकं चान्यगेहश्च शूर: चपलयतिविलासी क्रूरकर्मा कुचेता:।।

 

अर्थात यदि सूर्य पंचम भाव में हो तो व्यक्ति बचपन में दुःखी रहता है तथा इन्हें धन प्राप्ति नही होती है और यौवन में अनेक रोग से व्यक्ति पीड़ित होता है और इन्हें एक ही पुत्र होता है किंतु व्यक्ति शूर, चंचल बुद्धि वाला और विलासी होता है साथ ही ऐसा व्यक्ति बुरे कर्म करने वाला और बुरी सलाह देने वाला अर्थात दुष्ट होता है तो वहीं वैधनाथ जी ने पंचम भाव के सूर्य स्थित होने के शुभ फल बताए हैं उनके अनुसार “राजाप्रियः चंचलबुद्धियुक्त: प्रवासशील: सुतगेदिनेशे” अर्थात यदि सूर्य पंचम भाव में हो तो व्यक्ति राजा का प्यारा, चंचल बुद्धि वाला, पुत्र सुख प्राप्त करने वाला और परदेश जाने वाला होता है।

 

ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के मत व अनुभव के अनुसार यदि सूर्य पंचम भाव में हो तो व्यक्ति क्रोधी व मूर्ख होता है और व्यक्ति के ज्येष्ठ संतान चाहे वह पुत्र हो या पुत्री के लिए मारक होता है किंतु यदि ज्येष्ठ संतान की कुंडली में आयुष्य के योग हैं तो ऐसे व्यक्तियों की ज्येष्ठ संतान से नही बनती या ज्येष्ठ संतान को कोई रोग रहता है या व्यक्ति अपनी ज्येष्ठ संतान से दूर रहता है या फिर ज्येष्ठ संतान के साथ वैमनस्य, अनबन तथा नित्यप्रति कलह होता रहता है साथ ही ऐसा व्यक्ति दूसरों को ठगने से आनंद की प्राप्ति करता है और प्रमादी अर्थात असावधान और बेफिक्र अर्थात और अपने में मस्त रहता है साथ ही ऐसे व्यक्ति की मृत्यु प्रायः हिर्दय, फेफड़े, किडनी व मस्तिष्क पीड़ा से होती है और इन्हें धर्म में कम ही रुचि रहती है, यवनमत में भी कुछ इसी प्रकार का उल्लेख मिलता है यवनमत कि अनुसार यदि पंचम भाव में सूर्य हो तो व्यक्ति मूर्ख, कम संतति वाला, क्रोधी, नास्तिक और धार्मिक कार्यों में विघ्न करने वाला होता है।

 

ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के मत व अनुभव के अनुसार यदि पंचम भाव में सूर्य जल राशि का हो तो ऐसे व्यक्तियों के बच्चे कमजोर और बीमार होते हैं तथा यदि पंचम भाव में स्थित सूर्य की चंद्र, गुरु व शुक्र से युति या दृष्टि संबंध न हो तो प्रायः संतान की मृत्यु हो जाती है या संतान को मृत्यु तुल्य कष्ट रहता है, यदि पंचम भाव में सूर्य कर्क, वृश्चिक या मीन राशि का हो तो व्यक्ति को शारीरिक कष्ट और दुःख होता है तथा यदि पंचम भाव में सूर्य वृषभ, मिथुन, कन्या, तुला, मकर व कुंभ राशि का हो तो व्यक्ति बुरी बुद्धि, बुरे कर्म, क्रोधी व बुरी संगति वाला होता है किंतु यदि सूर्य शुभ ग्रह से संबंध रखता हो तो अशुभ फलों में कमी होती है और ऐसे व्यक्ति कंजूस और स्वार्थी होते हैं, यदि पंचम भाव में सूर्य मेष, सिंह व धनु राशि का हो तो व्यक्ति को उच्च शिक्षा प्राप्त होती है व संतान कुछ दिक्कतों व सर्जरी के साथ होती है तथा कुछ ग्रंथकारों का मत है कि यदि मेष का सूर्य पंचम में हो तो संतान नही होती किंतु ज्योतिर्विद पूषार्क जेतली जी के अनुसार यदि पंचमाधिपति शुभ ग्रह हो और दिग्बली हो या भाग्येश पंचम भाव में स्थित हो या पंचम का स्वामी भाग्य स्थान या एकादश भाव में हो या पंचम भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति को संतान अवश्य ही होती है, यदि सिंह राशि का सूर्य पंचम भाव में हो तो व्यक्ति को संतान तो अवश्य होती है किंतु संतान की शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है या मृत्यु तुल्य कष्ट होता है या संतान विवाह उपरांत स्वम् घर छोड़ कर चली जाती है साथ ही ऐसे व्यक्तियों के लिए संतान शुभफलदाई नही होती और संतान का भाग्योदय भी जन्मस्थान व पितृस्थान से दूर ही होता है किंतु ऐसे व्यक्तियों की संतान व्यवहार कुशल होती है।

 

जय श्री राम।

 

Astrologer:- Pooshark Jetly

Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)

Mobile:- 9919367470, 7007245896

Email:- pooshark@astrologysutras.com

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