मृत्यु भाव में आयु कारक शनि का फल
मृत्यु भाव में आयु कारक शनि का फल भाग:-१
अष्टम भाव मृत्यु, पतन, गूढ़ विद्या, पैतृक संपत्ति, दुःख का भाव होता है ऐसी स्थिति में शनि का अष्टम भाव में बैठना इन सभी को प्रभावित करता है शनि आयु का कारक होता है अतः अष्टम भाव में स्थित शनि आयु की वृद्धि करता है साथ ही ऐसे व्यक्तियों की अप्रत्याशित मृत्यु नही होती कहने का आशय यह है कि ऐसे व्यक्तियों की अचानक से मृत्यु नही होती है साथ ही अष्टम भाव में स्थित शनि मंद गति से उन्नति का सूचक होता है क्योंकि अष्टम में बैठा शनि हमारी कुंडली के तीन मुख्य भावों दशम भाव, द्वितीय भाव व पंचम भाव को देखता है जिस कारण से ऐसे व्यक्तियों की उन्नति मंद गति से होती है, ऐसे व्यक्तियों को पैतृक संपत्ति कुछ संघर्ष के उपरांत प्राप्त होती है तथा कुटुंब में मतभेद बना रहता है जिस कारण से ऐसे व्यक्तियों को तनावपूर्ण स्थितियों का भी सामना करना पड़ता है, अष्टम भाव में स्थित शनि आध्यात्म की ओर झुकाव बढ़ाता है तथा ऐसे व्यक्तियों को धर्म-आध्यात्म में अच्छी रुचि रहती है, अष्टम भाव में स्थित शनि की तीसरी दृष्टि दशम भाव पर पड़ती है जिस कारण से ऐसे व्यक्तियों को अत्यधिक परिश्रम कर के ही बड़ी सफलता प्राप्त होती है तथा ऐसे व्यक्ति संघर्ष करते हुए व विपरीत परिस्थितियों से होते हुए सफल होते हैं साथ ही ऐसे व्यक्ति छोटे कार्य से शुरुवात कर के बड़ी उन्नति को प्राप्त करते हैं, अष्टम भाव में स्थित शनि की सप्तम दृष्टि दूसरे भाव अर्थात धन भाव पर पड़ती है जो यह दर्शाता है कि ऐसे व्यक्ति यदि शनि ग्रह से जुड़ा कार्य करते हैं तो शीघ्र सफलता की संभावना बढ़ जाती है परंतु यदि शनि अशुभ भावों का स्वामी हो तो ऐसे व्यक्तियों को शनि से जुड़े कार्य को करने से बचना चाहिए साथ ही ऐसे व्यक्तियों के कुटुंब/परिवार में तनावपूर्ण स्थितियाँ अकसर बनी रहती है, अष्टम भाव में स्थित शनि की दसवीं दृष्टि पंचम भाव में पड़ती है जो यह दर्शाता है कि विपरीत परिस्थितियों से हुए शिक्षा पूर्ण होगी तथा ऐसे व्यक्तियों के संतान को किसी प्रकार का कष्ट रहता है या संतान विलंब से या कुछ कठिनाइयों के साथ प्राप्य होती है, यहाँ एक बात और ध्यान देने योग्य यह है कि अष्टम भाव, पंचम भाव से चतुर्थ होता है अर्थात यह भाव विद्या के सुख का भाव है अतः मेरे मत व अनुभव के अनुसार ऐसे व्यक्तियों का कार्यक्षेत्र उनकी विद्या से अलग होता है कहने का आशय यह है कि अधिकतर कुंडलियों में यह देखने मे आया है कि ऐसे व्यक्ति जो विद्या अर्जित करते हैं वह काम नही कर पाते हैं, अष्टम भाव में स्थित शनि चर्म रोग का भी सूचक होता है।
मेष लग्न की कुंडली में यदि अष्टम भाव में शनि स्थित हो तो व्यक्ति मेहनती होता है तथा आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह स्थिति शुभ होती है अर्थात कर्म और आर्थिक दृष्टिकोण से शनि की अष्टम भाव में स्थिति मेष लग्न वालों के लिए शुभ होती है किंतु ऐसे व्यक्तियों को संतान विलंब से प्राप्त होती है, यदि वृषभ लग्न की कुंडली में शनि अष्टम भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्तियों को कार्य क्षेत्र में कुछ परिश्रम के साथ सफलता प्राप्ति के योग बनते हैं तथा पिता सुख में कुछ कमी रहती है किंतु कर्म और आर्थिक दृष्टिकोण से यह स्थिति शुभ होती है वृषभ लग्न के व्यक्तियों की कुंडली के अष्टम भाव में स्थित शनि कुछ विलंब के साथ संतान सुख देता है, यदि मिथुन लग्न की कुंडली में शनि अष्टम भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्तियों को परिवार का पूर्ण सहयोग नही प्राप्त हो पाता तथा ऐसे व्यक्ति धन का सही तरह से इस्तेमाल नही कर पाते और कुछ परेशानी के साथ संतान सुख प्राप्त करते हैं किंतु आयु में वृद्धि होती है, यदि कर्क लग्न की कुंडली में शनि अष्टम भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्तियों के जीवनसाथी का रुझान अपने परिवार की तरफ अधिक रहता है और यदि लग्नेश चंद्रमा पर भी शनि की दृष्टि हो तो यह स्थिति और अधिक खराब हो जाती है तथा ऐसे व्यक्तियों के कार्यक्षेत्र में व्यवधान अधिक आते हैं साथ ही धनार्जन में भी अनेक बाधाएं आती हैं साथ ही ऐसे व्यक्तियों की वाणी कुछ कटुता लिए होती है और संतान सुख में कुछ कमी अनुभव होती है किंतु यदि दसवें, दूसरे व पंचम भाव पर मंगल की भी दृष्टि हो तो यह स्थिति कुछ हद तक शुभप्रद होती है तथा इन समस्याओं में कुछ कमी आती है।
पोस्ट की लंबाई को ध्यान में रखते हुए इसका दूसरा भाग जल्द ही प्रकाशित करूँगा।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
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