कुंडली और उच्च व नीच ग्रह के फल
कुंडली और उच्च व नीच ग्रह के फल
ज्योतिष में एक बात जो बहुत ही अधिक प्रचलन में है कि उच्च के ग्रह हमेशा शुभ फल देते हैं व नीच के ग्रह हमेशा अशुभ फल देते है यह पूर्णतया सत्य नही है कभी-कभी उच्च के ग्रह भी अशुभ फल व संघर्ष देते हैं और नीच के ग्रह शुभ फल देकर जीवन में स्थायित्व प्रदान करते हैं तो चलिए जानते है कि किन परिस्थितियों में उच्च के ग्रह शुभ और नीच के ग्रह अशुभ नही होते है:-
१. यदि कुंडली में कोई ग्रह उच्च राशि के होकर बैठे हों किन्तु नवमांश में पाप वर्ग के हों, शत्रु राशि के हों, नीच राशि के हों, क्रूर ग्रह की राशि में हों, त्रिक भाव में हो, तो उनकी शुभता में कमी आती है तथा ऐसे ग्रह कुंडली में उच्च के होकर भी बहुत शुभ नही होते।
२. यदि कुंडली में त्रिक भाव के स्वामी उच्च के होकर विराजमान हो तो जीवन में संघर्ष बना रहता है तथा कड़े संघर्ष के उपरांत बड़ी सफलता प्राप्त होती है।
३. यदि कुंडली में अकारक ग्रह उच्च राशि के होकर बैठे हों तो वह शुभ नही होते ऐसे व्यक्तियों के जीवन में निरंतर संघर्ष की स्थिति बनी रहती है अब प्रश्न यह उठता है कि अकारक ग्रह कौन होते है तो ऐसे ग्रह जो त्रिकोण के स्वामी न हों तथा त्रिक भाव के स्वामी हों और लग्नेश के शत्रु हों ऐसे ग्रहों को अकारक ग्रह की संज्ञा दी गयी है।
४. यदि कुंडली में कोई ग्रह उच्च राशि का हो किन्तु भाव चलित में स्थान परिवर्तन करता हो तो इस परिस्थिति में भी उसके शुभ फल में कमी आ जाती है तथा ऐसे व्यक्ति जीवन में कड़े संघर्ष के उपरांत सफलता को प्राप्त करते हैं।
५. यदि कुंडली में कोई ग्रह नीच राशि का हो किन्तु नवमांश में शुभ वर्ग का हो, मित्र राशि का हो, स्वराशि या मूलत्रिकोण राशि का हो, उच्च राशि का हो, सौम्य ग्रह की राशि में हो, शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो उसकी अशुभता में कमी आती है।
६. यदि कोई ग्रह त्रिक भाव का होकर लग्न कुंडली में नीच राशि का हो तो इस परिस्थिति में भी उसके अशुभ फल में कमी आ जाती है।
७. यदि कोई ग्रह नीच राशि का होकर किसी ऐसे ग्रह से दृष्ट या युत हो जो उस ग्रह की उच्च राशि, स्वराशि, मूलत्रिकोण राशि हो तो इस परिस्थिति में भी नीच राशि स्थित ग्रह के अशुभ फल में कमी आ जाती है।
८. यदि कोई अकारक ग्रह (ऐसे ग्रह जो लग्न के मित्र न हो व त्रिकोण के स्वामी न हो साथ ही त्रिक भाव के स्वामी हों) नीच राशि के होकर स्थित हों तो इस परिस्थिति में भी उस ग्रह के अशुभ फल में कमी आ जाती है।
९. यदि नीच राशि में स्थित ग्रह की नवमांश में वर्गोत्तम स्थिति हो तो इस परिस्थिति में भी उस ग्रह के अशुभ फल में कमी आ जाती है अब प्रश्न यह उठता है कि वर्गोत्तम स्थिति कैसे देखी जाती है, ऐसे ग्रह जो लग्न कुंडली व नवमांश दोनों में एक ही राशि में स्थित हो तो उन्हें वर्गोत्तम ग्रह कहते हैं।
१०. यदि नीच राशि में स्थित ग्रह अंशों में कमजोर हो कहने का तात्पर्य कि ऐसे ग्रह जो 0° से 4° व 24° से 30° के मध्य हो तो उसकी अशुभता में कमी आ जाती है।
११. यदि उच्च राशि में स्थित ग्रह अंशों में कमजोर हो कहने का तात्पर्य कि ऐसे ग्रह जो 0° से 4° व 24° से 30° के मध्य हो तो उसकी शुभता में कमी आ जाती है।
१२. यदि नीच राशि में स्थित ग्रह पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो इस परिस्थिति में भी उस ग्रह के अशुभ फल में कमी आ जाती है ठीक इसी प्रकार यदि उच्च राशि में स्थित ग्रह पर क्रूर या शत्रु ग्रह की दृष्टि हो तो उस परिस्थिति में उच्च ग्रह के शुभ फल में कमी आ जाती है।
१३. यदि उच्च राशि में स्थित ग्रह पर क्रूर ग्रह व शत्रु ग्रह की दृष्टि हो तो उच्च राशि में स्थित ग्रह के शुभ फल में कमी आ जाती है।
१४. यदि उच्च राशि में स्थित ग्रह केंद्र या त्रिकोण के स्वामी होकर त्रिक भाव (6, 8 व 12 भाव को त्रिक भाव कहते हैं) में स्थित हो तो उच्च राशि में स्थित ग्रह की शुभता में कमी आ जाती है।
१५. यदि नीच राशि में स्थित ग्रह एकादश भाव में स्थित हो व शुभ ग्रह (गुरु व शुक्र) द्वारा देखा जाता हो तो इस परिस्थिति में भी नीच राशि में स्थित ग्रह के अशुभ फल में कमी आ जाती है।
जय श्री राम।
Astrologer:- Pooshark Jetly
Astrology Sutras (Astro Walk Of Hope)
Mobile:- 9919367470
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